जमशेदपुर : नारायण प्राइवेट आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में संत रविदास की जयंती मनाई गई. इस शुभ अवसर पर संस्थान का संस्थापक डॉक्टर जटाशंकर पांडे जी ने कहा कि श्री गुरु रविदास का जन्म स्थान काशी स्थित BHU के पीछे डाफी क्षेत्र में स्थित है उनकी जन्म स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है जो संत रविदास के नाम पर काशी, उत्तर प्रदेश, सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर का गुम्बद सुनहरे रंग का है जो देखने में बेहद खूबसूरत एवं भव्य लगता है।
इसे काशी का दूसरा गोल्डन टेम्पल भी कहते हैंगुरु अर्जन ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में रविदास की रचनाओं को शामिल करने का फैसला किया, सिखों के पवित्र ग्रंथ में रविदास के 41 पद हैं, जिन्हें सिख भगत रविदास के नाम से पुकारते हैं, जिनमें से अधिकांश बहुत ही स्पष्ट हिंदी में हैं। उनकी कविताएँ ईश्वर, ब्रह्मांड, प्रकृति, गुरु और नाम के प्रति उत्कट प्रेम से भरी हुई हैं।यह मंदिर संत रविदास की याद में साल 1954 में बनवाया गया था. दिल्ली में लोदी वंश के सुल्तान रहे सिकंदर लोदी ने संत रविदास से नामदान लेने के बाद उन्हें तुग़लकाबाद में 12 बीघा ज़मीन दान की थी जिस पर यह मंदिर बना था।यह श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर बन गया।
रविदास जयंती हर साल माघ पूर्णिमा को मनाई जाती है। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ समानता और मानवता का संदेश देने वाले संत श्री गुरु रविदास जी की 645वीं जयंती आज मनाई जा रही है।16 फरवरी को रविदास जयंती के मौके पर पंजाब से बड़ी संख्या में लोग वाराणसी जाते है। संत रविदास 15वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान भक्ति आंदोलन से जुड़े थे और उनके भजन गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं। इस अवसर पर मुख्य रूप से मौजूद रहे एडवोकेट निखिल कुमार, प्रिंसिपल जयदीप पांडे, शांति राम महतो, प्रकाश कुमार महतो, शशि प्रकाश महतो, गौरव महतो, पवन कुमार महतो, आदि उपस्थित रहे।
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