जमशेदपुर : जमशेदपुर से झामुमो लोकसभा प्रत्याशी सह निवर्तमान बहरागोड़ा विधायक समीर मोहंती ने पार्टी आलाकमान को पत्र लिखकर कांग्रेस जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे पर चुनावी फंड में हेराफेरी एवं जानबूझकर कई बूथों पर एजेंटों को न बैठाकर भाजपा की मदद करने का आरोप लगाया तथा जिलाध्यक्ष के अविलंब निष्कासन की मांग की :
विगत 25 मई को लोकसभा चुनाव के छठे चरण में जमशेदपुर में मतदान संपन्न होते ही गठबंधन के झामुमो प्रत्याशी समीर मोहंती के खेमे के साथ-साथ कांग्रेस के भीतरखाने भी यह विवाद तेजी से बाहर आया कि पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा क्षेत्र में जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे द्वारा झामुमो प्रत्याशी समीर मोहंती से लिये गये पैसों में हेरफेर कर एवं जानबूझकर कई बूथों पर एजेंटों को न बैठाकर अंदर ही अंदर भाजपा प्रत्याशी विद्युत वरण महतो को मदद करने की कोशिश की गई है।
चुनाव पश्चात बिष्टुपुर स्थित 1 जून को तिलक पुस्तकालय में जिला कांग्रेस द्वारा बुलाये गये समीक्षा बैठक में झामुमो प्रत्याशी समीर मोहंती के शामिल न होने से यह कयास भी लगाया जाने लगा था कि जल्द ही संभवतः समीर मोहंती इस संदर्भ में झामुमो के शीर्ष नेतृत्व को कांग्रेस जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे द्वारा गठबंधन धर्म का पालन न करने, उनके पैसों का गलत इस्तेमाल करने एवं विरोधी पार्टी को मदद पहुंचाने के संदर्भ में आधिकारिक शिकायत भी कर सकतें है।
अब सूत्रों के हवाले से यह पुख़्ता खबर आ रही है कि जमशेदपुर के गठबंधन प्रत्याशी सह बहरागोड़ा से झामुमो विधायक समीर मोहंती ने अपने शीर्ष नेतृत्व को बकायदा एक आधिकारिक पत्र के जरिये पूर्वी सिंहभूम के कांग्रेस जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे द्वारा बूथ-व्यवस्था के मद में दिये गये पैसों में हेरफेर एवं जानबूझकर कई बूथों पर एजेंट न बैठाकर भाजपा प्रत्याशी की मदद करने का आरोप लगाया है। साथ ही पत्र के माध्यम से समीर मोहंती ने झामुमो के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ कांग्रेस के आलाकमान से भी हस्तक्षेप कर संबंधित जिलाध्यक्ष पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत अविलंब निष्कासन करने की मांग भी की है।
विदित हो कि इस बार के लोकसभा चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ है कि कांग्रेस गठबंधन में होने के कारण 400 से कम सीटों, महज 328 पर ही चुनाव लड़ी है। इंडिया गठबंधन कुल 466 सीटों पर लड़ी जिसमें से 138 सीटों पर कांग्रेस ने अपने सहयोगी पार्टियों को टिकट दिया और उनमें से जमशेदपुर संभवतः इकलौती सीट है जहां कांग्रेस की महत्वपूर्ण सहयोगी पार्टी झामुमो के लोकसभा प्रत्याशी द्वारा कांग्रेस के ही जिलाध्यक्ष पर चुनावी फंड में हेराफेरी एवं विरोधी पार्टी को मदद पहुंचाने का सीधा आरोप लगाया गया है।
अब महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि झारखंड में सत्तासीन गठबंधन के सरकार की मुख्य पार्टी झामुमो के प्रत्याशी द्वारा कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के जिलाध्यक्ष पर इतना गंभीर आरोप लगता है, शहर एवं प्रदेश के जाने-माने अखबारों द्वारा इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जाता है फिर भी भला क्या कारण हो सकता है कि इतने गंभीर मामलें का संज्ञान न तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और ना ही प्रदेश प्रभारी द्वारा लिया जाता है। यहां तक कि बीते जून को रांची में प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर के नेतृत्व में हुये समीक्षा बैठक में भी झामुमो प्रत्याशी द्वारा कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पर लगाये इस गंभीर आरोप पर चर्चा तक नहीं होती। इतने गंभीर मामलें पर प्रदेश नेतृत्व की चुप्पी भी अपने-आप में कई सवाल खड़ें करती है। खुद जिलाध्यक्ष की तरफ से भी इस आरोप के खिलाफ सिवा जुबानी जमाखर्च के, कोई मजबूत खंडन अबतक सामने नहीं आया है। पूर्वी सिंहभूम जिला कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच भी यह बहस का मुद्दा बना हुआ है कि अगर जिलाध्यक्ष ही इस तरह की अनुशासनहीनता दिखायेंगे तो भला आगामी विधानसभा चुनावों में संगठन कैसे एकजुट होकर लड़ेगी ?
सोचना यह है कि अब जबकि विधानसभा चुनाव सर पर है और इंडिया गठबंधन के घटक दल ही एक-दूसरे पर इस तरह के आरोप लगा रहें हो तो आगामी विधानसभा को लेकर वे कैसे एक बेहतर रणनीति बना पायेंगे। विपक्ष में जबकि इस तरह आरोप-प्रत्यारोपों के दौर चल रहें हो और विपक्ष का शीर्ष नेतृत्व भी इस कदर मौन हो तो भाजपा एवं सहयोगी दल द्वारा इसका फायदा उठाने का इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता है। ऐसे में गठबंधन लोकसभा प्रत्याशी एवं निवर्तमान झामुमो विधायक द्वारा लिखित में की गई शिकायत जिला कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व को भी कटघरे में खड़ा कर देता है।
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