बारियातू /कुतुबुद्दीन : प्रखंड मुख्यालय के एनएच-22 किनारे एक खूबसूरत इमारत खड़ी है। बाहर से देखने पर लगेगा कि यह शिक्षा का मंदिर होगा, ज्ञान की गंगा यहां बहती होगी, लेकिन हकीकत इससे उलट है। यह “शहीद सरदार भगत सिंह पुस्तकालय सह वाचनालय है, जो पिछले 21 वर्षों से अपने दरवाजे बंद किए खड़ा है। न यहां विद्यार्थी आते हैं, न कोई किताबें पलटी जाती हैं, बस दीवारों पर जमी धूल और जंग लगे ताले यह कहानी कहने को मजबूर हैं कि हम बने तो थे किताबों के लिए, पर हमारी किस्मत में ताले लिख दिए गए।
पुस्तकालय बना, लेकिन कभी किताबें नहीं खोली गई। 2004-05 में जिला प्रशासन ने इस पुस्तकालय को बड़े सपनों के साथ बनवाया था। उद्देश्य था कि यहां क्षेत्र के बच्चे, युवा और बुद्धिजीवी बैठकर पढ़ाई करें, लेकिन हुआ क्या इसका ताला खुलने से पहले ही इस पर जंग लग गया।
कुछ साल बाद, 2009 से 2020 तक, स्थानीय लोगों ने इस भवन का “निजी उपयोग करना शुरू कर दिया। सरकारी संपत्ति होते हुए भी यह पुस्तकालय अपने उद्देश्य से भटक गया। ऐसा लगने लगा जैसे यह किसी खास व्यक्ति की मिल्कियत बन गया हो।
16 साल बाद, 2021 में तत्कालीन उपायुक्त अबु इमरान ने पहल की और पुस्तकालय को फिर से रंग-रोगन करवा कर चालू करवाया। इस मौके पर भव्य क्विज़ प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें प्रखंड के 50 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। बालिका वर्ग की छात्राओं ने शानदार प्रदर्शन किया और बाजी मारी। यह देखकर लगा कि अब यह पुस्तकालय दोबारा जीवित हो गया है। परंतु, यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी। 2022 में अबु इमरान का तबादला हुआ, और उनके जाते ही पुस्तकालय पर फिर से ताले लग गए। अब न यहां बच्चे आते हैं, न पढ़ाई होती है, बस दीवारें खड़ी सब देख रही हैं और किताबें सिसक रही हैं। बारियातू प्रखंड में शिक्षा की स्थिति पहले ही खराब है। यहां एक भी निजी इंटर कॉलेज या डिग्री कॉलेज नहीं है। बस एक प्लस टू स्कूल, चार हाई स्कूल और एक झारखंड आवासीय विद्यालय हैं। ऐसे में 15,000 से ज्यादा विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तकालय एक उम्मीद बन सकता था, लेकिन अब यह उम्मीद भी सरकारी उदासीनता के नीचे दबी हुई है।
जनता का सवाल: शिक्षा के इस ताले को कब खोलेगा प्रशासन
अब स्थानीय विद्यार्थी, शिक्षक और बुद्धिजीवी विधायक प्रकाश राम और उपायुक्त उत्कर्ष गुप्ता से गुहार लगा रहे हैं कि इस पुस्तकालय को पुनः चालू किया जाए और इसमें आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।यह पुस्तकालय सिर्फ एक इमारत नहीं है, यह शिक्षा की रोशनी का द्वार है, जो पिछले 21 साल से बंद पड़ा है। सवाल यह है कि यह कब खुलेगा? कब यहां विद्यार्थी बैठकर पढ़ाई करेंगे? क्या प्रशासन इस ताले को तोड़ेगा, या फिर यह ऐसे ही इतिहास बन जाएगा? अब देखना यह है कि शिक्षा के इस बंद दरवाजे को प्रशासन कब खोलता है।