झारखंड : क्या सीता सोरेन की आखिरकार घर वापसी हो गई. क्या गुरुजी की बड़ी बहू आखिरकार सोरेन परिवार में वापस आ गईं. क्या वाकई 2 फरवरी को सीता सोरेन औपचारिक रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल हो जाएंगी।
खबरें हैं कि पार्टी उनको राज्यसभा भेजने की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद सीता सोरेन को अपना राजनीतिक भविष्य अंधकार में डूबता नजर आ रहा था । सीता सोरेन ये भी समझ रही थीं कि भाजपा में उनकी अगली पीढ़ी यानी जयश्री, विजयश्री और राजश्री के लिए कोई संभावना नहीं नजर आ रही थी।
मार्च 2024 में दिया था इस्तीफा
मार्च 2024 में सीता सोरेन ने विधायकी और झामुमो की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था. हालांकि, पिछले 10 महीने में कुछ भी उनके हक में नहीं घटा. वह शायद समझ गईं कि जिस भाजपा में उनके ही पुराने नेताओं में पद, पावर और प्रतिष्ठा के लिए सिर फुटौव्वल मचा है, वहां उनके लिए क्या जगह बचेगी।
शिबू सोरेन के जन्मदिन पर शामिल हुईं थी
11 जनवरी को शिबू सोरेन के 81वें जन्मदिन के मौके पर मोरहाबादी स्थित आवास पर सीता सोरेन की बेटियों सहित मौजूदगी से सियासी गलियारों में जो अटकलें शुरू हुई थी, आखिरकार उसका पटाक्षेप हो गया।
सोरेन परिवार की बड़ी बहू आखिरकार वापस आ रही हैं. ये संभावना इसलिए भी व्यक्त की गई थी क्योंकि चुनाव में दौरान बिलो द बेल्ट जाकर हेमंत सोरेन और कल्पना मुर्मू सोरेन के खिलाफ आरोप लगाने के बावजूद सीता सोरेन बड़ी सहजता से गुरुजी के जन्मदिन के मौके पर पूरे परिवार के साथ नजर आई थीं।
और ऐसा बिना किसी बातचीत के संभव नहीं था. संभावना जताई जा रही थी कि सीता सोरेन और देवर हेमंत सोरेन के बीच सारे गिले शिकवे दूर कर लिए गए थे।
JMM छोड़ने के बाद लगाएं थे आरोप
गौरतलब है कि जब सीता सोरेन ने झामुमो छोड़ा तो सोरेन परिवार पर उन्हें नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. कहा कि उन्हें उनका उचित हक नहीं दिया गया। सीता सोरेन ने ये भी कहा कि वर्ष 2009 में उनके पति दुर्गा सोरेन की मौत संदिग्ध थी. उन्होंने जांच की मांग की थी लेकिन परिवार ने उसे अनसुना कर दिया. याद कीजिए कि सीता सोरेन ने हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद सीएम पद के लिए कल्पना मुर्मू सोरेन के नाम का खुला विरोध किया था।
जामा सीट से लगातार जीततीं रही थी
सियासी जानकार मानते हैं कि वर्ष 2009 से ही लगातार जामा विधानसभा सीट पर जीतती आ रहीं सीता सोरेन को शायद ये भ्रम हो चला था कि वह एक जनप्रिय नेता बन चुकी हैं। परिवार में सबसे बड़ी बहू हैं तो उन्हें लगा कि गुरुजी की राजनीतिक विरासत पर पहले उनका हक है लेकिन बिना तीर धनुष निशान के लगातार दो चुनाव में करारी हार और फिर कल्पना मुर्मू सोरेन की सियासत में असाधारण उभार ने उनको सोचने पर मजबूर किया।
सीता सोरेन समझ गई हैं कि अब कम से कम एक दशक तक झामुमो की ताकत ही असल सच्चाई है. साथ रहे तो पद भी रहेगा और प्रतिष्ठा भी. क्योंकि भाजपा अभी रिकंस्ट्रक्शन के दौर से गुजर रही है जहां नए नेताओं के लिए कोई मौका नहीं है।
अब जिस भाजपा में बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुबर दास, नीलकंठ सिंह मुंडा, अमर कुमार बाउरी, चंपई सोरेन और बिरंची नारायण जैसे दिग्गज नेता अपनी सही जगह तलाश रहे हैं तो वहां सीता सोरेन के लिए क्या जगह बचती।
JMM में आने के बाद जा सकती है राज्यसभा
सीता सोरेन अब झामुमो में आ रही हैं तो शायद उनको राज्यसभा भेजा जाएगा. शायद उनकी 3 बेटियों में से किसी को संगठन तो किसी को चुनावी राजनीति में मौका दिया जाएगा. सीता सोरेन को संगठन में भी बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। वैसे भी उन्हें साल 2009 में पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था. भाजपा में अब उनके लिए कुछ नहीं बचा है. पद मिल नहीं. प्रतिष्ठा के लिए बड़े नेताओं में ही संघर्ष चल रहा है. पावर का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
वैसे भी भाजपा को सीता सोरेन के जाने से कोई नुकसान नहीं होने वाला लेकिन भाजपा में बने रहने से सीता सोरेन को जरूर नुकसान हो रहा था. वह एक पेंडुलम में झूल रही थीं। वह भी शायद समझ गई हैं कि सोरेन परिवार ही उनका असली ठिकाना है. वैसे भी, भाजपा ने दुर्गा सोरेन की मौत के सीबीआई जांच आ वादा किया था. जीत जाती तो शायद यह औपचारिकता भी पूरी होती लेकिन पिछले 10 माह में ऐसा कुछ नहीं हुआ। अभी झामुमो प्रचंड बहुमत के साथ सरकार में है. हवा का रुख उधर है. इस बार का बसंत भी हेमंत के साथ है. धारा के साथ बहने में ही भलाई है. विपरीत बहने की ताकत सीता सोरेन में है भी नहीं. 2 चुनाव परिणामों ने यह साबित किया है।