जमशेदपुर : झारखण्ड बंगभाषी समन्वय समिति के द्वारा एक पत्रकार वार्ता सम्पन्न हुआ। इस पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए कहा गया कि किसी व्यक्ति का पहला परिचय होता है उसका मातृभाषा, एक जाति का पहचान होता है उसकी मातृभाषा से और अगर किसी जाति से उसकी मातृभाषा को छीन लिया जाए तो एक दिन उस जाति का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा और ठीक ऐसा ही एक परिस्थिति से जूझ रहा है।
झारखंड के तमाम बांगलाभाषी बिहार का विभाजन के पहले से ही दक्षिणी बिहार के बांग्ला भाषा-भाषी बहुल जिलों में बांगला माध्यम से पठन पाठन व्यवस्था को एक योजनाबद्ध तरीके से समाप्त करने की साजिश चल रही है. झारखण्ड बनने के बाद यह प्रक्रिया और तेज हुई। वर्तमान में बांगला माध्यम का पठन पाठन करीब करीब समाप्त हो चुका है। पाठ्यक्रम नहीं है, किताबे छापना बन्द कर दी गई, शिक्षकों की बहाली नहीं हो रही हैं, नतीजतन छात्र-छात्राएं भी मजबूरन बांगला में पठन-पाठन करना बन्द कर दिया। परिणाम स्वरूप झारखण्ड के इन इलाकों के संस्कृति एवं रीती रिवाज पर एक गहरा असर दिखाई दे रहा है। यहां उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान में बहुत ही स्पष्ट रूप से लोगों को मातृभाष में पठन-पाठन का मौलिक अधिकार दिया गया है, परंतु झारखण्ड में संविधान की उन धाराओं का खुलेआम उलंघन हो रहा है।
झारखण्ड बांग्लाभाषी पिछले 23 वर्षों से अपनी मातृभाषा के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। एक के बाद एक कई सरकारें आई और गई, सभी सरकारों के पास हमने अपनी बातें रखी, अनुनय विनय अनुरोध सब कुछ कर के देख लिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सिर्फ आश्वासन ही मिला। आज हमारे भाषा के अस्तित्व खतरे में है। ऐसी स्थिति में समिति की तरफ से आन्दोलन को तेज करने का फैसला लिया गया और उसी सिद्धान्त के अनुरूप आगामी 22 सितंबर 2023 जमशेदपुर के साकची स्थित नेताजी सुभाष मैदान से एक ऐतिहासिक पदयात्रा शुरू होगी जो 5 दिन के उपरान्त 150 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए राँची पहुंचेंगी और 5 सूत्री मांगों का एक ज्ञापन झारखंड के मुख्यमंत्री को दी जाएगी।
1) कक्षा एक से लेकर कक्षा 12वीं तक सभी विषयों में बांग्ला का पाठ्यक्रम जारी किया जाए। सभी अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में एक विषय अपनी अपनी मातृभाषा में पढ़ाई की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
2) प्रत्येक विषयों में पर्याप्त मात्रा में पुस्तक छपवाया जाए एवं वितरित जाए।
3) सन् 1990 के बाद जितनी भी बांग्ला माध्यम का विद्यालयों को हिन्दी या अंग्रेजी भाषा में परिवर्तित किया गया है उन्हें अविलंब पुनः बंगलाभाषा में परिवर्तित किया जाए।
4) जरूरत के मुताबिक बांग्ला शिक्षक शिक्षिकाओं की नियुक्ति किया जाए ताकि बांग्ला माध्यम में पड़े लिखे बच्चों को रोजगार मिल सके।
सरकार की तत्वावधान में बांगला अकादमी का स्थापना किया जाए। उक्त पदयात्रा का शुभारंभ बांग्लाभाषा आन्दोलन के जाने माने हस्तियां जैसे असम विश्वविद्यालय के भूतपुर्व उपाचार्य डॉ तपोधीर भट्टाचार्जी, असम राज्य में बांगलाभाषा आन्दोलन के पहले पंक्ति के नेता नीतीश भट्टाचार्य, रविन्द्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व उपाचार्य तथा विशिष्ट शिक्षाविद डॉ पवित्र सरकार तथा सर्वभारतीय बंगभाषी समन्वय समिति के महासचिव चित्रा लाहिरी करेंगी। यह पदयात्रा राज्य सरकार, सांसदों तथा विधायको के लिए एक चेतावनी होगी कि अब हमें आश्वासन नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए।