पटना : पूर्वी भारत शिक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए DUTA एवं FEDCUTA की भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. नंदिता नारायण ने कही। उन्होंने कहा कि छात्रों और शिक्षाप्रेमियों की यह लड़ाई सिर्फ शिक्षा बचाने की ही लड़ाई नहीं है, बल्कि सभ्यता और इंसानियत बचाने की भी लड़ाई है।
देश में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा की बदहाली अपने चरम पर है। सरकार द्वारा शिक्षा बजट में कटौती एवं आवश्यक संसाधनों की कमी की वजह से देश में आज सार्वजनिक शिक्षा हांफ रही है। सरकार द्वारा लायी गयी नयी शिक्षा नीति-2020 बची-खुची सरकारी शिक्षा को भी समाप्त कर रही है। यह शिक्षा नीति शिक्षा के निजीकरण, व्यापारीकरण व साम्प्रदायीकरण की ब्लूप्रिंट के सिवा कुछ नहीं है।
उक्त बातें आज नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (NEP 2020 ) के खिलाफ स्थानीय विद्यापति हॉल में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथियों ने कही।
महान मानवतावादी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के 87वें स्मृति दिवस पर छात्र संगठन एआईडीएसओ के तत्वावधान में आयोजित छात्र सम्मेलन को संबोधित करते हुए सेवानिवृत्त आईएएस एवं बिहार राज्य आपदा प्रबंधन ऑथोरिटी के भूतपूर्व उपाध्यक्ष व्यासजी ने कहा कि शिक्षा का काम छात्रों में तार्किक सोच तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना होना चाहिए, जबकि एनईपी- 2020 में डार्विन के स्थापित सिद्धांतों को भी पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है। एचबीटीयू, कानपुर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ब्रजेश सिंह ने कहा कि नयी शिक्षा नीति-2020 में शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को खत्म कर शिक्षा के केन्द्रीयकरण के नाम पर सारा नियंत्रण केन्द्र सरकार अपने हाथों में ले रही है। शैक्षिक प्रशासन को समग्र रूप से केंद्रीकृत करने का सरकार का प्रयास शिक्षा के मामलों को पूरी तरह से निरंकुश तरीके से नियंत्रित करने की प्रवृत्ति को इंगित करता है।
बीएचयू के भूतपूर्व प्रोफेसर डॉ. मो. आरिफ ने कहा कि एनसीईआरटी के जरिये हाल ही में सरकार ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में काटछांट की है। इसके पीछे सरकार की मंशा अवैज्ञानिक व अतार्किक सोच वाली ऐसी रोबोट पीढ़ी तैयार करने की है, जो वास्तविक साहित्य, विज्ञान, इतिहास और राजनीति से कोई संबंध न रखे। पटना कॉलेज के प्राचार्य डॉ. तरूण कुमार ने कहा कि देश के सामाजिक -सांस्कृतिक आंदोलन के महान मनीषियों ने वैज्ञानिक, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी और सार्वभौमिक शिक्षा का सपना देखा था, लेकिन आजादी के बाद सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उल्टे सरकारों ने शिक्षा के निजीकरण, व्यापारीकरण, साम्प्रदायीकरण और केन्द्रीकरण की नीति को आगे बढ़ाने का ही काम किया।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. धर्मेन्द्र कुमर ने कहा कि आज निम्न आय वाले परिवारों के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विशेषकर उच्च शिक्षा प्राप्त करना लगभग असंभव है। उन्होंने कहा कि पुराने सड़े-गले व रूढ़िवादी विचारों के स्थान पर आधुनिक मानवीय मूल्यों को शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए। सम्मेलन को संबोधित करते हुए एआईडीएसओ के अखिल भारतीय अध्यक्ष वी. एन. राजशेखर ने कहा कि ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020’ सरकारी शिक्षा व्यवस्था को समूल नष्ट करने तथा शिक्षा का सम्पूर्ण व्यवसायीकरण करने की नीति है। इस नीति का उद्देश्य आजादी के बाद से शासक वर्ग द्वारा शिक्षा पर किये गये लगातार हमलों के बाद भी धर्मनिरपेक्ष, जनवादी और वैज्ञानिक शिक्षा के बचे-खुचे अवशेषों को मिटा देना है।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए एआईडीएसओ के अखिल भारतीय महासचिव सौरव घोष ने कहा कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा- 2020 नीति का ही नतीजा है कि स्कूल-कॉलेजों और केन्द्रीय सहित सभी विश्वविद्यालयों में बेतहाशा फीस वृद्धि हो रही है। देशभर में स्थाई शिक्षकों के 11 लाख पद खाली पड़े हैं। उन्होंने छात्रों से बड़े पैमाने पर वालंटियर बनने/बनाने और हर स्तर पर छात्रों की संघर्ष कमेटियों के गठन की अपील की। छात्र कंवेंशन में पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार के एक हजार से अधिक छात्र प्रतिनिधियों ने भाग लिया। छात्र प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में पेश किये गये मुख्य प्रस्ताव के समर्थन में अपने विचार रखे।