“क्रिकेट के मैदान में अंतिम गेंद तक और राजनीति के मैदान में रिजल्ट आने तक जीत और हार के बीच तलवार लटके रहता है. कब कौन बाजी मार जाए ये कहा नहीं जा सकता. इसलिए लोग समय का बेसब्री से इंतजार करते है. इसलिए तो कहा जाता है समय बहुत बलवान होता आगर आप समय के साथ नहीं चलेंगे तो समय आपका इंतजार नहीं करेगा और समय आपको पीछे छोड़कर तेजी से आगे बढ़ जाएगा” परिवर्तन संसार का नियम और समय के साथ परिवर्तन भी जरूरी है. लेकिन इतना परिवर्तन मत कर दीजिए की अंत में परिवर्तन ही आपसे सवाल पूछने लगे कि आखिर इतना परिवर्तन पर परिवर्तन क्यों… आखिर इसकी जरूरत क्या थी ??
झारखंड की 14 सीटों पर भाजपा की स्थिति तबतक काफी मजबूत थी, जबतक प्रत्याशियों के नाम का एलान पार्टी द्वारा नहीं किया गया था. लेकिन नाम के एलान के साथ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने झारखंड को जिस तरह से अपने प्रयोग का स्थल बनाया, बैठे-बिठाए कई सीटों पर कांग्रेस को थाली परोस कर उसे मुकाबले में ला दिया है. ऐसे में भाजपा को अपने एक-एक सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी, प्रधानमंत्री मोदी जी को मनाना होगा और समझाना होगा, क्योंकि टिकट बंटवारे ने न केवल भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को नाराज किया है, बल्कि भाजपा के परंपरागत वोटर रहे राजपूत, कायस्थ, कोयरी- कुशवाहा को भी मानने के लिए काफी जद्दोजहद करना होगा।
पुराने भाजपाई सुनील सिंह, जयंत सिन्हा, पीएन सिंह और सुदर्शन भगत का टिकट काट दिया गया. ऊपर से टिकट बंटवारे में जेवीएम से भाजपा में आये लोगों को प्राथमिकता मिली. उसने भीतर ही भीतर भाजपा के पुराने लोगों को नाराज कर रखा है. जेवीएम से भाजपा में आये बाबूलाल मरांडी की कृपादृष्टि अपने जेवीएम के साथी रहे लोगों पर ही बरसी, चाहे वे ढुल्लू महतो, धनबाद हों या कालीचरण सिंह, चतरा या फिर सीता सोरेन दुमका हो या कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी या फिर रांची से संजय सेठ ऐसे कितने लोग हैं, जिन्होंने या तो भाजपा छोड़ा या दूसरे दल से आकर भाजपा में हावी हो गए।
कई पुराने भाजपाई भाजपा में ही रहकर इसकी मजबूती में लगे रहे. पर अब पार्टी ने उन्हें हाशिये पर ला दिया है और यही भाजपा के लिए अलार्मिंग स्थिति है, क्योंकि ऐसा एक पर नहीं, कई सीटों पर हुआ और अब रामटहल चौधरी जैसे जातीय समीकरण वाले नेता झारखंड में भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिए हैं।
यही मांडू विधायक जेपी पटेल के साथ भी हुआ, जिन्हे भाजपा संभाल कर नहीं रख पाई और आज वे कांग्रेस का हिस्सा बनकर हज़ारीबाग लोकसभा सीट पर भाजपा को चैलेंज कर रहे हैं. जो दशकों से भाजपा का गढ़ रहा है।
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