जमशेदपुर : मानव – त्राता श्री श्री ठाकुर अनुकूलचन्द्र चक्रवर्ती आधुनिक बांग्लादेश के पावना जिले के हिमायतपुर ग्राम में प्रातः स्मरणीय श्रद्धेय परमपूज्य श्री शिवचन्द्र चक्रवर्ती एवं प्रातः स्मरणीया परमपूज्या माता मनमोहिनी देवी के पुत्र के रूप में सन् 1888 ई० शुक्रवार के दिन, भाद्र शुक्ल ताल नवमी तिथि को इस धराधाम पर अवतरित हुए थे। बाल्यावस्था से ही दिव्यभाव उनमें परिलक्षित होता था । जब परमपूज्या माता मनमोहिनी देवी ने अपने सन्त सद्गुरु के निर्देश से. उनको सतनाम प्रदान किया तो उन्होंने कहा था कि “यह मंत्र तो मैं गर्भ से ही जप कर रहा हूँ” । “वे इस सतनाम ” के नामी अर्थात् Incarnation (अवतार) थे। उनके दिव्य भाव, चरित्र एवं आध्यात्मिक क्रिया-कलापों के फलस्वरूप कुछ लोगों को विशिष्ट अनुभूतियाँ हुई और उनके इर्द गिर्द भक्तजन जुटने लगे। अनवतर कीर्तन एवं आध्यात्म चर्चा होने लगी। उस क्रम में (1914 से 1919 ई0 के बीच ) उनको भाव समाधि हो जाती थी. समाधि अवस्था में उनके श्रीमुख से उच्चस्तरीय वाणियाँ निर्गत होती थी ( 72 दिनों की महा-भाव – वाणी संकलित हो सकी थी जो ‘पूण्यपुंथी’ के रूप में प्रकाशित है) उसमें से 7 जून 1919 ई0 / 24 ज्येष्ठ 1326 0 / 72वाँ दिवस की महा-भाव – वाणी का एकांश – “नहीं, तब प्रकाश की सृष्टि हुई नहीं थी, अंधकार नहीं था, सौर जगत का उद्भव नहीं हुआ था, वे अकेले थे, इच्छा हुई सृष्टि करने कि और सारी सृष्टियाँ हुई।
* मैं ही वे हूँ मैं ही वे हूँ, मै ही वे हूँ
लोगों के आवागमन के कारण पद्मा नदी (वहाँ गंगा नदी के नाम ‘पद्मा’ है) के किनारे उनका जन्मस्थली ‘सत्संग’ आश्रम के रूप में गठित हुआ । गृहस्थ सन्यास का सिद्धान्त उनको अच्छा लगता था (“संसारी सन्यासी चाहिए, जंगल का सन्यासी और नहीं चाहिए ” ) ( -पुण्यपुंथि पंचम संस्करण द्वितीय दिवस 2 आषाढ़ 1321 वंग्ला साल, अं0 1914 ई0) कर्म के साथ धर्म का समन्वय करते हुए उन्होंने सारा जीवन वाणी, कर्म एवं आचरण के द्वारा संसार को पथ निर्देश दिया. भारत – पाकिस्तान विभाजन के कुछ दिन पूर्व करोड़ों की सम्पत्ति के जन्मभूमि आश्रम का परित्याग कर 2 सितम्बर 1946 को बिहार ( वर्त्तमान में झारखण्ड ) के बैद्यनाथधाम के आकर पुनः नए सिरे से आश्रम का पुनर्गठन लिए और अति कष्टकर समय को अतिक्रमण करते हुए इस आश्रम को पुनः पुष्पित – पल्लवित किए। अपने ज्येष्ठ पुत्र परमपूज्यपाद श्री श्री बड़दा के हाथों में सत्संग आश्रम की सुन्दर ढंग से परिचालना के बाद उनके पौत्र परमपूज्यपाद श्री श्री दादा के निर्देशन में श्री श्री ठाकुरजी को केन्द्रित कर लगभग पाँच करोड़ से अधिक “सत्संगी ” सच्चे अर्थों में मनुष्य बनने एवं बनाने की तैयारी करते रहे हैं। वर्त्तमान में उनके प्रपौत्र परमपूज्यपाद श्री श्री आचार्य देव के निर्देशनों को पूज्यपाद श्री श्री अविनदा अद्भुत कुशलता पूर्वक कार्यान्वयन कर रहे हैं।
15 सितम्बर 2024 (बं0 30 भाद्रो) को हम सभी श्री श्री ठाकुर अनुकूलवचन्द्र जी का 137 वाँ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में महामहोत्सव सत्संग विहार टाटानगर, काशीडीह, बगान एरिया, साकची, जमशेदपुर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाने जा रहे हैं एवं भारत के सभी श्रीमन्दिरों एवं सत्संग केन्द्रो में एक साथ यह महा महोत्सव मनाया जा रहा है।