Holi 2025 : भारत में होली के उत्सव को देख आप भी कहेंगे होली तेरे कितने रंग? कहीं गुलाल, कहीं लट्ठमार, कहीं मसान वाली होली, कहीं फूलों की होली तो कहीं मनाई जाती है अंगारों की होली। यूं तो अंगारों की होली का नाम सुनते ही शरीर में सिहरन सी होने लगती है लेकिन ये बिल्कुल सत्य है। देश में कुछ ऐसे भी स्थान है जहां इस प्रकार की अनोखी परंपरा है। चलिए आज हम आपको बताते है कहां अंगारों की होली मनाई जाती है।
भारत के कोने-कोने में हर साल होली का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल 14 मार्च के दिन देशभर में होली का त्यौहार उल्लास और भव्यता के साथ मनाया जाएगा। अपना देश भारत विविधताओं का देश है। यहां विभिन्न प्रकार की संस्कृति, परंपरा और पर्व आपको देखने को मिल जाएंगे। होली के भी यहां अनेकों रंग देखने मिलते है।
यहां मनाई जाती है अंगारों वाली होली
भारत में कई स्थानों पर अंगारों की होली भी खेली जाती है। कुछ लोग रंग, गुलाल नहीं बल्कि अंगारों की होली खेलते है। इस प्रकार की होली राजस्थान,मध्यप्रदेश और कर्नाटक के कई इलाकों में खेली जाती है। अंगारों की होली को अग्नि होली के नाम से भी जाना जाता है। यह वीरता और आस्था से जुड़ी एक अनोखी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि धधकते अंगारों पर चलने से परिवार सालभर निरोगी और खुशहाल रहता है।
होली के अगले दिन अग्नि- परीक्षा वाली होली खेलते है
अंगारों की होली एक पुरानी परंपरा है। राजस्थान के अजमेर से लगभग 30 किलोमीटर दुर आदिवासी गांव है जिसका नाम केकड़ी है। वहां आदिवासी समाज के लोग होली के अगले दिन अग्नि- परीक्षा वाली होली खेलते है। इस तरह की होली इस तरह की होली राजस्थान के अन्य शहरों और गांवों में जैसे नागौर, पाली, जोधपुर आदि में भी मनाई जाती है। इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग लकड़ी के ढेर को जलाकर अंगारे इकट्ठा करते हैं और फिर एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। इस दौरान अंगरों से बचने के लिए लोग मोटे कपड़े, जूते और चश्मा पहनते हैं।
अंगारों की होली खेलने की परंपरा पिछले 500 सालों से चली आ रही है। यह परंपरा भगवान शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने एक बार अपने भक्तों को बुराई से बचाने के लिए अंगारों से स्नान किया था। जिसके बाद से ही यह परंपरा शुरू हुई। होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ऐसी होली राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश और कर्नाटक के कई इलाकों में खेली जाती है। दूसरी कथा के अनुसार यह परंपरा सूर्य देव की पूजा का प्रतीक है।