लेखक सुभाष शाह…..
भारतवर्ष केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक गूढ़ सांस्कृतिक चेतना है, जहाँ धर्म, प्रतीक और नेतृत्व आपस में गुंथे होते हैं। इस चेतना में जब भी संकट आता है, तब कोई न कोई लोकनायक, किसी पौराणिक प्रतीक के रूप में उभरता है। 21वीं सदी में भारत की राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों के बीच नरेंद्र मोदी एक ऐसे ही ‘हनुमान रूप’ लोकनेता के रूप में सामने आए हैं, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
हनुमान जी का प्रतीकात्मक स्वरूप और उसकी प्रासंगिकता…..
हनुमान जी भारतीय संस्कृति में निःस्वार्थ सेवा, बल, भक्ति और कार्यसिद्धि के प्रतीक हैं। रामकथा में कहा गया है:
“यदि हनुमान न होते, तो राम का कार्य कभी सिद्ध न होता।”
यह विचार दर्शाता है कि हनुमान जी केवल एक सेवक नहीं, एक निर्णायक शक्तिशाली नायक भी हैं। इस विचार की छाया में, जब भारतीय राजनीति अस्थिरता, भ्रष्टाचार और दिशाहीनता से जूझ रही थी, तब नरेंद्र मोदी ने हनुमानवत शैली में राष्ट्रसेवा का संकल्प लिया।
नरेंद्र मोदी का उदय और भाजपा की पुनर्स्थापना….
वर्ष 2001 के बगोदरा कांड से लेकर 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक का उनका सफर, एक युगांतकारी अध्याय बन गया। उनके उदय से पहले भारतीय जनता पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता सक्रिय थे। इन वरिष्ठ नेताओं के संरक्षण में मोदी जी का नेतृत्व निखरता गया।
2014 और 2019 के आम चुनावों में मिली प्रचंड बहुमत की विजय, यह प्रमाणित करती है कि जनता ने मोदी जी को केवल नेता नहीं, “राष्ट्र कार्य के हनुमान” के रूप में स्वीकार कर लिया।
उत्तराधिकार और नेतृत्व का संकट….
अब जब मोदी युग अपने परिपक्व चरण में है, तब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है —
“मोदी जी के पश्चात भाजपा का नेतृत्व कौन संभालेगा?”
हालांकि योगी आदित्यनाथ को भावी नेता के रूप में देखा जा रहा है, परंतु भारतीय राजनीति में केवल ‘घोषणा’ पर्याप्त नहीं होती संस्कार, संघर्ष और सर्वस्वीकृति से ही कोई ‘हनुमान’ बनता है। यदि पार्टी जल्दबाज़ी या थोपने की नीति अपनाती है, तो महत्वाकांक्षी नेताओं के बीच विद्रोह उत्पन्न हो सकता है, जिससे पार्टी का संगठनात्मक ढाँचा बिखर सकता है।
“ढेर जोगी, मठ उजाड़” — यह कहावत भारतीय राजनीति में बार-बार सिद्ध हुई है।
नरेंद्र मोदी की निर्णायक भूमिका और जनता का विश्वास…..
यदि नरेंद्र मोदी स्वयं किसी को उत्तराधिकारी घोषित करें, जैसे योगी जी को, तो भी वह केवल कथन नहीं, एक प्रमाण की प्रक्रिया होगी। उन्हें अपने आचरण, कार्यों और नीति से यह सिद्ध करना होगा कि वे भी ‘हनुमानी’ परंपरा के वाहक हैं।
जनता केवल वादों से नहीं, चरित्र और क्षमता से जुड़ती है…..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के वह नायक हैं, जिनका व्यक्तित्व केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक भी है। जब तक मोदी जी सक्रिय हैं, भाजपा सत्ता में संगठित, निर्णायक और शक्तिशाली रहेगी।
किन्तु यदि भाजपा उनके महत्त्व को केवल रणनीतिक दृष्टि से देखे, और उत्तराधिकार को प्राकृतिक क्रम की बजाय राजनीतिक प्रयोग बनाए, तो पार्टी को भीतर से संकट घेर सकता है।
“हनुमान की सेवा से ही राम का राज्य आता है, और जब हनुमान उपेक्षित होते हैं, तब युद्ध में बाधा आती है।”
भविष्य की स्थिरता, केवल सत्ता में बने रहने में नहीं, बल्कि उस जनभावना और सांस्कृतिक चेतना को बनाए रखने में है, जिससे मोदी जी को राष्ट्र का हनुमान बनाया गया।
