कर्नाटक : कर्नाटक सरकार इस समय विवादों में चल रही है, कुछ दिन पहले ही एक आदेश में कहा गया था कि मुदिगेरे और चिक्कमगलुरु जिले में अगर आंगनवाड़ी शिक्षक की नौकरी चाहिए तो उर्दू में दक्षता होना जरूरी रहेगा। असल में राज्य सरकार की अधिसूचना कहती है कि उन क्षेत्रों में जहां कुल जनसंख्या की 25 फीसदी आबादी अल्पसंख्यक होगी, वहां पर कन्नड़ के साथ-साथ उस अल्पसंख्यक समाज की भाषा आना भी जरूरी है।
कर्नाटक सरकार का उर्दू वाला आदेश….
अब क्योंकि मुदिगेरे और चिक्कमगलुरु जिले में मुस्लिम आबादी ज्याद है, ऐसे में वहां उर्दू भाषा को अनिवार्य कर दिया गया है। इसी फैसले को लेकर विवाद शुरू हो गया है, बीजेपी तो आरोप लगा रही है कि एक बार फिर कांग्रेस सरकार तुष्टीकरण की राजनीति पर उतर आई है, वो मुस्लिमों को खुश करने के लिए उर्दू को बढ़ावा देने का काम कर रही है। बीजेपी की स्थानीय ईकाई इस वजह से भी विरोध कर रही है क्योंकि वो राज्य में कन्नड़ भाषा को ही ज्यादा प्राथमिकता देना चाहती है।
बीजेपी को क्यों दिखा तुष्टीकरण ?….
बीजेपी नेता सीटी रवि ने तो एक बयान में कह दिया है कि एक जमाने में निजाम ने कर्नाटक में कन्नड़ भाषा के विस्तार पर ही रोक लगा दी थी। अब निजाम की आत्मा कांग्रेस में बसती है। इस समय टीपू सुल्तान और निजाम के सपने को कांग्रेस पूरा करने का काम कर रही है। बीजेपी के दूसरे नेता भी इसी लाइन पर बढ़ते हुए कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं, जोर देकर कहा जा रहा है कि सिद्धरमैया की सरकार मुस्लिमों को खुश करने के लिए ऐसे फरमान सुना रही है।
लोगों की राय बंटी, सरकार पर सवाल….
अभी के लिए इस विवाद पर कर्नाटक सरकार ने कुछ नहीं बोला है। इस आदेश को वापस भी नहीं लिया गया है, लेकिन सोशल मीडिया पर एक वर्ग जरूर कह रहा है कि जो नेता कर्नाटक कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने की बात करते थे, जो नेता हिंदी से परहेज करते थे, अब कैसे उर्दू को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।