RANCHI : रांची-टाटा मार्ग पर स्थित है 16 भुजी मां दुर्गा का दिउड़ी मंदिर. यह मंदिर झारखंड की अनोखी संस्कृति का प्रतीक है जहां पाहन और पुजारी मिलजुल कर पूजा संपन्न कराते हैं. आदिवासी इसे देवड़ी दिरी के नाम से पूजते हैं. आस्था के इस केंद्र से विवाद तब जुड़ा जब कुछ लोगों ने मंदिर में ताला जड़ दिया. 11 सितंबर को आदिवासी समन्वय समिति ने यहां बैठक की और मंदिर ट्रस्ट को भंग करने की मांग की, उन्होंने दिवड़ी दिरी की जमीन को बचाने का संकल्प भी लिया. आखिर आदिवासियों को आपत्ति किस बात पर है और मंदिर का क्या है इतिहास? इसकी पड़ताल इस रिपोर्ट में गई है.
रांची जिले के तमाड़ प्रखंड में स्थित है प्राचीन दिउड़ी मंदिर, जिसका निर्माण लगभग 700 साल पहले कराया गया था. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां के 15 पुजारियों में से आधे ब्राह्मण और आधे आदिवासी पाहन हैं. स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर उनकी आस्था का केंद्र है और बड़े-बड़े सेलिब्रेटी भी यहां आकर पूजा करते हैं जिसमें महेंद्र सिंह धोनी का नाम सबसे ऊपर है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से यह मंदिर विवाद का केंद्र बन गया है और स्थिति यह है कि शुक्रवार छह सितंबर को कुछ लोगों ने मंदिर में ताला जड़ दिया था. मंदिर से जुड़ा विवाद क्या है यह जानने के लिए हमने विभिन्न पक्षों से बात की और जानने की कोशिश की कि आखिर मामला क्या है?
रांची के दिउड़ी मंदिर का निर्माण तमाड़ के राजा ने करवाया था. मां दुर्गा के इस मंदिर का स्थापत्य ओडिशा की स्थापत्य कला से मिलता-जुलता नजर आता है. इस मंदिर का निर्माण बड़े-बड़े चट्टानों से किया गया है, किसी भी चट्टान को जोड़ने के लिए सीमेंट या किसी भी अन्य सामग्री का प्रयोग नहीं किया गया है. यहां बड़े-बड़े चट्टानों पर कलाकारी की गई है. आदिवासियों का दावा है कि इस मंदिर का निर्माण मुंडा राजा खैरा ने कराया था. इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी है और यह काफी प्राचीन मंदिर भी है, जिसकी वजह से यहां सैकड़ों लोग रोज दर्शन के लिए आते हैं. यही वजह है कि पर्यटन विभाग ने मंदिर के सुंदरीकरण के लिए आठ करोड़ रुपए का फंड जारी किया है, जिसके जरिए मंदिर और मंदिर परिसर में कई निर्माण कार्य होना है. मंदिर की देखभाल के लिए 2021 में ट्रस्ट का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष अनुमंडल पदाधिकारी (SDO) मोहन लाल मरांडी हैं, उनके अलावा ट्रस्ट में सीओ, मुख्य पुजारी नरसिंह पंडा (कोषाध्यक्ष) और मुख्य पाहन सुखराम मुंडा (उपकोषाध्यक्ष) भी शामिल हैं।
आदिवासी समन्वय समिति के लक्ष्मी नारायण मुंडा का कहना है कि दिउड़ी मंदिर का हिंदूकरण किया जा रहा है जबकि यह आदिवासियों का मंदिर है. यहां आदिवासी पाहन ही पूजा कराते हैं, जब तमाड़ के राजा यहां पूजा करने आते थे, तो वे अपने साथ पंडा को लेकर आते थे और उस वक्त वह पूजा कराता था. यह मंदिर मुंडारी खूंटकटी जमीन है ( आदिवासियों द्वारा जंगल साफ कर बनाई गई जमीन) इसपर किसी ब्राह्मण का अधिकार कैसे हो सकता है? दूसरा यह कि यहां मंदिर ट्रस्ट का निर्माण गलत तरीके से किया गया है, ना तो उसे ग्राम सभा ने पास किया है और ना ही उसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी है. यह आदिवासियों का सरना स्थल है, इसलिए हम ट्रस्ट को भंग करने की मांग कर रहे हैं. हमारे पास इससे संबंधित तमाम दस्तावेज भी मौजूद हैं.
एसडीओ मोहनलाल मरांडी का कहना है कि यह विवाद पर्यटन विभाग की ओर से जारी 8 करोड़ के फंड से जुड़ा है. ट्रस्ट पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि ट्रस्ट का गठन तो 2021 में ही हो गया था. जहां तक जमीन विवाद का मसला है तो मंदिर के नाम पर दो प्लाॅट है, पुराने समय में तमाड़ के राजाओं ने यह जमीन मंदिर के नाम पर दी होगी. अभी कोई विवाद नहीं है और स्थिति भी तनावपूर्ण नहीं है. सबकुछ सामान्य है. अगर ग्रामीणों को जमीन को लेकर कुछ विवाद है, तो वे कानूनी तरीके से कोर्ट में जाएं और फैसला करवाएं।
प्रभात खबर के प्रतिनिधि शुभम हलधर ने बताया कि यहां विवाद की वजह स्थानीय ग्रामीण नहीं हैं, बल्कि बाहरी लोग हैं. यहां के जो पुजारी और पाहन हैं उनके बीच कोई विवाद नहीं है और दोनों ही यहां पूजा-पाठ कराने का काम करते हैं. ट्रस्ट के विरोध के पीछे भी स्थानीय लोगों का हित जुड़ा है. शुभम हलधर बताते हैं कि जिस दिन मंदिर में तालाबंदी हुई उस दिन भी विवाद बहुत बड़ा नहीं था. दरअसल दिउड़ी गांव में मामले को सुलझाने के लिए बैठक हो रही थी, जिसमें जाने के लिए दुकान वालों ने अपने दुकान बंद किए और उसी दौरान कुछ लोगों ने यह कहा कि मंदिर भी बंद कर दिया जाए और मंदिर में ताला लगा दिया गया था. यहां सरना और हिंदू का कोई विवाद नहीं है, बस कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं।