अंकुश मौर्य, BHOPAL : देश के मीडिया की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमणा का हालिया बयान चर्चा में है। उन्होंने कहा कि मीडिया लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि मीडिया संस्थान संचालकों के मीडिया के साथ-साथ कई दूसरे भी बिजनेस हाउस भी होते हैं। मीडिया संस्थान उनके बिजनेस हाउस के लिए एक शेल्टर की तरह काम करते हैं। दूसरी वजह मीडिया संस्थानों को सरकारों की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद भी हो सकती है। अपनी इमेज ब्राडिंग के लिए सरकार मीडिया संस्थानों को करोड़ों रुपए विज्ञापन के तौर पर देती है और इस अहसान तले मीडिया इतना दब जाता है कि सच को सच और गलत को लत कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।
मध्य प्रदेश में भी कमोबेश कुछ ऐसे ही हालात हैं। आप यह जानकार हैरान होंगे कि अप्रैल 2021 से लेकर जनवरी 2022 तक मप्र सरकार ने मीडिया संस्थानों को 120 करोड़ रु. विज्ञापन के तौर पर दिए है। इस बारे में द सूत्र ने खास पड़ताल कर ये जानकारी हासिल की है कि सरकारी खजाने में जनता की जेब से टैक्स के रूप में आने वाली राशि से सरकार ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनित मीडिया दोनों को हर महीने 12 करोड़ रुपए बांटे हैं। आइए आपको बाताते हैं कि इन 10 महीनों में मीडिया के किस संस्थान को सरकार से कितना पैसा दिया गया है।
दैनिक भास्कर को मिले 07 करोड़, पत्रिका को 05 करोड़ सबसे पहले बात करते हैं प्रिंट मीडिया यानी अखबारों की। इसमें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के अखबार शामिल हैं। प्रदेश सरकार से विज्ञापन के रूप में सबसे ज्यादा राशि दैनिक भास्कर को मिली है।
10 महीने में दैनिक भास्कर ग्रुप को 700.22 लाख यानी 7 करोड़ रुपए के विज्ञापन दिए गए।
पत्रिका को 515.75 लाख यानी 5 करोड़ 15 लाख के विज्ञापन दिए गए।
नईदुनिया – नवदुनिया(जागरण ग्रुप ) को 301.83 लाख यानी 3 करोड़ 1 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
दैनिक जागरण प्रकाशन लिमिटेड को 282.4 लाख यानी 2 करोड़ 82 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
हरिभूमि को 283.55 लाख यानी 2 करोड़ 83 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
अंग्रेजी के टाइम्स ऑफ इंडिया को 270.57 लाख यानी 2 करोड़ 70 लाख रुपए के विज्ञापन मिले।
हिंदुस्तान टाइम्स को 135.64 लाख यानी 1 करोड़ 35 लाख रुपए के विज्ञापन मिले।
स्वदेश को 171 लाख यानी 1 करोड़ 71 लाख रुपए के विज्ञापन मिले।
पीपुल्स समाचार को 50.54 लाख रुपए के विज्ञापन मिले।
एमपी टुडे मीडिया प्राइवेट लिमिटेड यानी प्रदेश टुडे को 87.25 लाख के विज्ञापन मिले।
टीवी चैनलों में आईबीसी-24 को दिए 5 करोड़, टीवी-18 को 4 करोड़
सरकार से न्यूज कंटेंट और विज्ञापन के लिए सरकार से हर साल मोटी रकम लेने वाले सिर्फ अखबार ही नहीं बल्कि टीवी न्यूज चैनल भी शामिल हैं। रीजनल चैनलों को नेशनल चैनल से ज्यादा विज्ञापन मिले हैं। इनमें पहले नंबर पर आईबीसी-24 टीवी चैनल है।
SB मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के IBC 24 चैनल को 511.67 लाख यानी 5 करोड़ 11 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
TV18 को 428.92 लाख यानी 4 करोड़ 28 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
NEWS NATION को 354.01 लाख यानी 3 करोड़ 54 लाख रुपए के विज्ञापन मिले।
BANSAL NEWS को 335.83 लाख यानी 3 करोड़ 35 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
SAHARA इंडिया टीवी नेटवर्क को 291.52 लाख यानी 2 करोड़ 91 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रायवेट लिमिटेड के INDIA NEWS को 230.55 लाख यानी 2 करोड़ 30 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
अर्पण मीडिया प्रायवेट लिमिटेड IND 24 को 226.88 लाख यानी 2 करोड़ 26 लाख के विज्ञापन दिए गए।
ZEE मीडिया कॉर्पोरेशन को 206.45 लाख यानी 2 करोड़ 6 लाख रुपए के विज्ञापन मिले।
अनादि टीवी को 199.18 लाख यानी 1 करोड़ 99 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
शार्प आई एडवरटाइजिंग प्रायवेट लिमिटेड, साधना न्यूज को 168 लाख यानी 1 करोड़ 68 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
डिजियाना न्यूज को 148.39 लाख यानी 1 करोड़ 39 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
न्यूज वर्ल्ड को 109.11 लाख यानी 1 करोड़ 9 लाख रुपए के विज्ञापन मिले
DNN को 74.69 लाख रुपए के विज्ञापन दिए गए।
सिटी हलचल न्यूज नेटवर्क को 38.22 लाख के विज्ञापन दिए गए।
नेशनल न्यूज चैनलों की बात करें तो ABP NEWS को 8 लाख, TV TODAY NETWORK( AAJTAK) को 6 लाख के विज्ञापन दिए गए। इस तरह से सरकार ने सिर्फ 10 महीने की अवधि में ही अखबार और न्यूज चैनलों को विज्ञापन के तौर पर 120 करोड़ रुपए बांटे है।
मीडिया की विश्वसनीयता पर संकट
लोकतंत्र में जनता ही सरकार चुनती है और सरकार हो या सिस्टम उसकी जवाबदेही जनता के प्रति होती है। यदि सिस्टम जनता के लिए ईमानदारी औऱ संवेदनशीलता से काम नहीं कर रहा तो फिर सवाल उठाने की जिम्मेदारी मीडिया की ही होती है । लेकिन आज के दौर में मीडिया की विश्वसनीयता पर संकट है। संकट की एक बड़ी वजह है पैसा जो सरकार मीडिया संस्थानों को देती है। इसलिए सिस्टम की खामियां और लापरवाही को उजागर करने के बजाए ज्यादातर मीडिया संस्थान सरकार की इमेज ब्रांडिंग करने में जुटे रहते हैं। सरकार से आर्थिक रूप में मिली मदद अहसान हो जाती है और किसी का अहसान लेकर उसके खिलाफ लिखा या फिर बोला नहीं जा सकता है।
इसलिए…द सूत्र सिर्फ भगवान से डरता है
द सूत्र की टैग लाइन है कि हम सिर्फ भगवान से डरते हैं। आखिरकार द सूत्र ने ये टैग लाइन क्यों रखी ? दरअसल मीडिया की असल जिम्मेदारी है सच को सच कहना और झूठ को झूठ बताना। झूठ पर पर्दा डालना नहीं, बल्कि वॉच डॉग की तरह जनहित में सरकार और सिस्टम पर नजर रखना। यदि इसमें कहीं कुछ गलत हो रहा है तो सरकार की आलोचना करने से भी नहीं चूकना।