लोकतंत्र सवेरा : भारत में हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। ये दिन सभी डॉक्टरों को सम्मानित करने का दिन होता है और समाज में उनके अमूल्य योगदान को याद किया जाता है। कैसे डॉक्टर्स ने अपनी जान को जोखिम में डालकर कोविड-19 जैसी महामारी के समय में मरीजों की जान बचाई। सफेद कोर्ट के पीछे की थकान को समझने के लिए जरूरी है उनके योगदान को समझना।
डॉक्टर्स डे की बात कर रहे हैं को जेहन में ये सवाल तो आ ही रहा होगा की भारत की पहली महिला डॉक्टर कौन थीं? उनका नाम था आनंदी गोपाल जोशी। हालांकि आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे या उनके समान हैं। आइए डॉक्टर्स डे के मौके पर पहली महिला डॉक्टर के संघर्ष की कहानी।
क्यों देखा डॉक्टर बनने का सपना
आनंदी गोपाल ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया था। उनका जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे में हुआ था। सिर्फ 9 साल की उम्र में ही आनंदी की शादी हो गई थी और 14 साल की उम्र में वो मां बन गईं। मगर किस्मत में ये सुख नहीं था तो सिर्फ 10 दिन के अंदर ही बच्चे की गंभीर बीमारी की वजह से मौत हो गई। उसी पल से आनंदी ने संकल्प लिया कि वो अब किसी बच्चे को ऐसे बीमारी की वजह से मरने नहीं देंगी और डॉक्टर बनने का सपना देखा।
अमेरिका का कठिन सफर
आनंदी के पति गोपालराव जोशी शिक्षित थे उन्होंने आनंदीबाई को भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया। साल 1883 में, आनंदीबाई ने पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने का फैसला किया जो उस समय किसी भारतीय महिला के लिए एक अभूतपूर्व और साहसिक कदम था। उन्होंने पेंसिलवेनिया के Woman’s Medical College of Pennsylvania में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर 1886 में डिग्री हासिल की, और इस तरह वह भारत की पहली प्रमाणित महिला डॉक्टर बनीं।
चुनौतियों ने भी रोका रास्ता
ऐसा नहीं है कि आनंदीबाई के जीवन में चुनौतियां नहीं आईं। वो उसी समाज में रहती थीं जहां समाज में महिलाओं को घर की चारदीवारी के अंदर रहने वाली समझा जाता था। विधवा महिलाओं का जीवन भी उन्होंने देखा जो बहुत ही दर्द देने वाला था। उन्हें समाज में धर्म भ्रष्ट करने वाली महिला कहा जाने लगा। आनंदीबाई ने किसी की भी परवाह नहीं की और अपने रास्ते पर आगे बढ़ती गईं।
असमय हुई मृत्यु
आज भी आनंदीबाई जोशी को महिलाओं के लिए प्रेरणा माना जाता है। भारत में मेडिकल शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी की राह उन्होंने ही खोली। भारत सरकार ने उनके सम्मान में 1962 में एक डाक टिकट भी जारी किया। उनकी 9 साल की उम्र में शादी हुई। 14 साल में वो मां बन गईं और उसे खोने का दर्द भी झेला। फिर देखा डॉक्टर बनने का सपना और 19 साल की उम्र में उसे पूरा भी कर लिया। लेकिन जो किस्मत में लिखा हो उसे भला कौन टाल सकता है। महज 22 साल की उम्र में 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई जोशी का टीबी से निधन हो गया। हालांकि उनकी उम्र छोटी थी, लेकिन उनके द्वारा उठाया गया कदम भारतीय नारी इतिहास में मील का पत्थर बन गया।
