लेखक सुभाष शाह….

ऐसा लकड़ी मारा है।
न हींग लगे, न फिटकिरी।
काम बने चुनाव आयोग का।
मतदान का अधिकार देना, काम संविधान का।
बंद है 65 लाख, चुनाव आयोग के गोदाम में।
ले लेना अब आपका काम।
सिर दर्द चुनाव – आयोग और सरकार का।
आओ बांट लो थोड़ा थोड़ा।
तुम प्रयास करो, प्रमाण दो।
हम एक नहीं दो दो वोटरकार्ड भी देते है।
सिर दर्द देशी विदेशी की पहचान।
तुम प्रमाण दो, हम मोहर मारेंगे तुम्हारे पीठ पर।
नहीं दे सकते, तो चुप रहो, नहीं तो छोड़ दो देश।
विशेष मतदान से राजतंत्र, गणतंत्र चलता था,
तो क्या लोकतंत्र नहीं चल पाएगा?
65 लाख के मुर्दों, जिंदा है प्रमाण दो।
वोटरकार्ड मांग लो, सिर दर्द में साझा करो।
हे दो कार्डधारी, 1% ईमानदारों में तुम ही हो।
तुम दो से अधिक कार्डधारी, चुनाव आयोग का मेहमान हो।
हम ईमानदार, तुम ईमानदार,
शेष सभी बेइमान।
मैं चोर नहीं, क्षमतावान हु।
क्षमतावान का न कोई दोषा।
तुम मूर्ख हो, मैं नहीं।
अगर सत्ता में आना है,
तो 99% के पीछे चलो आगे नहीं।



