खास : सर दोराबजी जमशेदजी, टाटा जमशेदजी नौसरवानजी व हीराबाई के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म 27 अगस्त 1859 को बंबई में हुआ था। अपने योग्य और अनुभवी पिता के मार्गदर्शन में सर दोराबजी ने भारतीय उद्योग और व्यापार का व्यापक अनुभव प्राप्त किया। 1904 में जमशेदजी टाटा की मृत्यु के बाद उन्होंने पिता के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया। लोहे की खानों का ज्यादातर सर्वेक्षण उन्हीं के निर्देशन में पूरा हुआ। 1907 में टाटा स्टील और 1911 में टाटा पॉवर की स्थापना में सर दोराबजी की अहम भूमिका रही। वे टाटा समूह के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक इस पद को सुशोभित किया।
सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट सर दोराबजी टाटा, जो टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे थे, के द्वारा स्थापित किया गया था। 1932 में स्थापित, यह भारत के सबसे पुराने गैर सांप्रदायिक परोपकारी संगठनों में से एक है। अपने पिता की तरह, सर दोराबजी का मानना था कि अपनी संपत्ति का रचनात्मक प्रयोजनों के लिए उपयोग करना चाहिए। अतः अपनी पत्नी मेहरबाई की मौत के एक साल से भी कम समय में, उन्होने ट्रस्ट को अपनी सारी दौलत दान कर दी।
उन्होने आग्रह किया कि इसका सीखने की उन्नति और अनुसंधान, संकट और अन्य धर्मार्थ प्रयोजनों के राहत के लिए “जगह, राष्ट्रीयता या पंथ के किसी भी भेदभाव के बिना” इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उनकी तीन महीने बाद मृत्यु हो गई।
साकची को एक आदर्श शहर के रूप में विकसित करने में सर दोराबजी की मुख्य भूमिका रही, जो बाद में जमशेदपुर के नाम से जाना गया। 1910 में उन्हें एडवर्ड सेवन द्वारा नाइटहुड की उपाधि से नवाजा गया। सर दोराबजी का 1897 में मेहरबाई से विवाह हुआ लेकिन कोई संतान नहीं हुई। उपर्युक्त ट्रस्ट की स्थापना के बाद वह अप्रैल 1932 में यूरोप गए, जहां 3 जून 1932 को जर्मनी के किसिंग्रन में उनकी मृत्यु हो गई।