जमशेदपुर : नारायण आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस की जयंती मनाई गई एवं उनके तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक डाक्टर जटाशंकर पांडे ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता के लिये खुदी राम बोस ने मात्र 18 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के लिए फाँसी पर चढ़ गये।कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे।
किंतु खुदीराम से पूर्व 17 जनवरी 1872 को 68 कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय 13 वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नंबर 50वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढ़ी कसकर पकड़ ली और तब तक नहीं छोड़ी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गए बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था।स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
1905 में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लियाफरवरी 1906 में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकडों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रान्तिकारी सत्येन्द्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ खुदीरामने इस प्रदर्शनी में बाँटी। एक पुलिस वाला उन्हें पकडने के लिये भागा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारा और शेष पत्रक बगल में दबाकर भाग गये।
इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गयेमुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख्ते की ओर बढ़े थे। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इस अवसर मुख्य रूप से मौजूद रहे ऐडवोकेट निखिल कुमार, शान्ति राम महतो, अरुण पांडेय, देव कृष्णा महतो, पवन कुमार महतो, अजय कुमार मंडल, निमाइ मंडल आदि उपस्थित थे।