जमशेदपुर : नारायण प्राइवेट आईटीआई लूपुंगडीह चांडिल में भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि मनाई गई इसमें उपस्थित संस्थान के संस्थापक डॉक्टर जटाशंकर पांडे ने कहा बिरसा मुंडा का जन्म (15 नवम्बर 1875 – 9 जून 1900) एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए।
भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और ‘धरती आबा’ के नाम से भी जाना जाता है 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हत्यारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था।
यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई ने छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह ‘उलगुलान’ इसमें उपस्थित कॉलेज के प्राचार्य जयदीप पांडे, कृष्ण चंद्र महतो, देव कृष्णा महतो, अजय कुमार मंडल, गौरव महतो, संदीप नायक आदि उपस्थित थे।