चाणक्य शाह की कलम से
जमशेदपुर : झारखंड राज्य के गठन के बाद से अब तक चार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से तीन बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत हासिल की है। इस बार, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू चुनावी मैदान में उतरी हैं, जो इस क्षेत्र की राजनीति में एक नई दिशा का संकेत देती हैं।
रघुवर दास का राजनीतिक इतिहास…
रघुवर दास, जो वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल हैं, इस क्षेत्र से सबसे अधिक बार चुनाव जीतने वाले नेता माने जाते हैं। उन्होंने चार चुनावों में से तीन में विजय प्राप्त की है। जब वह राज्यपाल बने, तब यह चर्चा थी कि वह अपने करीबी किसी व्यक्ति को टिकट दिला सकते हैं. कई दावेदारों ने टिकट के लिए प्रयास किए, लेकिन अंततः रघुवर दास अपनी बहू पूर्णिमा साहू को टिकट दिलाने में सफल रहें।
पूर्णिमा साहू का चुनावी सफर….
पूर्णिमा साहू के लिए यह चुनाव न केवल एक चुनौती है, बल्कि यह उनके ससुर की खोई हुई राजनीतिक विरासत को पुनर्जीवित करने का एक अवसर भी है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने रघुवर दास की विरासत को ध्यान में रखते हुए उन्हें टिकट दिया है।
भाजपा प्रत्याशी पूर्णिमा साहू का सामना भाजपा से बागी हुए उम्मीदवार शिव शंकर सिंह और कांग्रेस के पूर्व सांसद डॉ. अजय कुमार जैसे प्रतिद्वंद्वी से होगा।
निर्दलीय प्रत्याशी शिव शंकर सिंह ने 3 वर्षों में पूर्वी विधानसभा के क्षेत्र में अपनी समाजसेवा और तरह तरह के सामाजिक कार्यों से एक अलग पहचान बनाई है. उस काम और सेवा के बदौलत पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान है. जिसको भेद पाना पूर्णिमा साहू के लिए बहुत ही कठिन हो सकता है. अंत तक टिकट की आस लगाए शिव शंकर सिंह को उस समय झटका लगा जब भाजपा ने पूर्णिमा साहू को टिकट दे दिया।
और शिव शंकर सिंह बगावत पर उतर आए और उन्होंने पूर्वी विधानसभा से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरकर पूर्वी विधानसभा के समीकरण को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. वह हर मंच और प्रेस कांफ्रेंस में ये कहते नजर आए कि उनका विरोध पीएम नरेंद्र मोदी, भाजपा या किसी शीर्ष नेताओं से नहीं बल्कि परिवारवाद के खिलाफ है. अब देखना यह दिलचस्प होगा की क्या शिव शंकर सिंह सरयू राय की तरह इस सीट पर अपना कब्जा जमाने में सफल होते हैं या फिर बहू अपने ससुर के विरासत को पुनर्जीवित करने में सफल होती है।