चाईबासा : चाईबासा शहर से महज चार किलोमीटर दूर स्थित बड़बिल गांव का 23 वर्षीय जैराम मछुआ आज दर्द, संघर्ष और उपेक्षा की जीवंत मिसाल बन चुका है। बचपन में खेलते वक्त लगी एक मामूली-सी पत्थर की चोट ने समय के साथ ऐसी भयावह बीमारी का रूप ले लिया कि आज जैराम के चेहरे का आधा हिस्सा लटक चुका है। हर गुजरता दिन उनके लिए असहनीय शारीरिक पीड़ा और मानसिक यातना लेकर आता है।
जैराम की तकलीफ केवल शारीरिक नहीं है। बीमारी के कारण उन्हें समाज की उपेक्षा, तिरछी नज़रों और टूटती उम्मीदों का भी सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक तंगी और सही इलाज के अभाव ने उनकी स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। एक साधारण परिवार से आने वाले जैराम के लिए इलाज का खर्च जुटाना किसी पहाड़ से कम नहीं।
ऐसे अंधेरे समय में जब अधिकतर लोगों ने मुँह मोड़ लिया, तब समाजसेवी रवि जायसवाल जैराम के लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आए। मानवता और संवेदना की मिसाल पेश करते हुए रवि जायसवाल ने जैराम की पीड़ा को समझा और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया। उनका यह सहयोग जैराम के लिए सिर्फ आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि यह विश्वास भी है कि इंसानियत अभी ज़िंदा है।
जैराम मछुआ की कहानी केवल एक बीमारी की दास्तान नहीं, बल्कि यह समाज के लिए एक सवाल भी है—कि क्या हम समय रहते एक-दूसरे का हाथ थामने को तैयार हैं? यह कहानी बताती है कि छोटी-सी मदद, किसी के जीवन में फिर से उजाला भर सकती है।
आज जरूरत है कि समाज, प्रशासन और संवेदनशील लोग आगे आएं, ताकि जैराम जैसे युवाओं को दर्द नहीं, बल्कि एक नई ज़िंदगी मिल सके।
