लोकतंत्र सवेरा : जमशेदपुर भाजपा की राजनीति इन दिनों रक्तदान शिविर से ज़्यादा “रक्तचाप” बढ़ाने का काम कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन जैसे अवसर पर आयोजित युवा मोर्चा के शिविर में सागर तिवारी को सम्मानित करना महज एक साधारण कार्यक्रम हो सकता था, लेकिन जिस तरह इस पर महामंत्री अभिमन्यु सिंह ने आक्रोश जताया, उससे साफ हो गया कि भाजपा युवा मोर्चा जमशेदपुर अपनी ही गुटबाजी में उलझा हुआ है।

भाजपा का युवा मोर्चा जहां संगठन को ऊर्जा देने का दायित्व निभाता है, वहीं जमशेदपुर में यह ऊर्जा आपसी खींचतान में नष्ट होती दिख रही है। जिलाध्यक्ष नीतीश कुशवाहा ने सागर तिवारी को सम्मानित कर यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी का दिल बड़ा होना चाहिए, लेकिन महामंत्री ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधियों से जोड़कर सवाल उठा दिया। सवाल वाजिब भी है क्या चुनाव में अधिकृत प्रत्याशी का विरोध करने वाले को सम्मानित करना अनुशासनहीनता नहीं है ?
लेकिन दूसरी ओर सागर तिवारी का पलटवार भी भाजपा के जख्म कुरेद देता है। उनका कहना है कि पार्टी में प्रतिभा को जगह नहीं दी जाती, गुटबाजी ने ही झारखंड में भाजपा की लगातार हार सुनिश्चित की है। जब कोई कार्यकर्ता अपने नाना के जनसंघ काल के योगदान से लेकर अपनी मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी और “युवा संसद” तक की उपलब्धियां गिनाने पर मजबूर हो जाए, तो यह संगठनात्मक खामियों का आईना है।
सच्चाई यही है कि भाजपा युवा मोर्चा की नई कमिटी का गठन महीनों से लंबित है। जिलाध्यक्ष तो बदल दिए गए, लेकिन टीम वही पुरानी है। यह दर्शाता है कि नेतृत्व केवल चेहरे बदलने तक सीमित है, ढांचे में कोई सुधार नहीं हुआ। यही कारण है कि पार्टी का उत्साही कार्यकर्ता सम्मान पाने के बजाय उपेक्षा का शिकार होता है और फिर वही उपेक्षित कार्यकर्ता “सम्मानित” होने पर विवाद का कारण बन जाता है।
प्रश्न यह है कि भाजपा जमशेदपुर महानगर की राजनीति आखिर किस दिशा में जा रही है? यदि रक्तदान शिविर जैसे छोटे कार्यक्रम भी गुटबाजी का मंच बन जाएं तो फिर बड़े चुनावों में कार्यकर्ता किसके लिए और किस उत्साह से काम करेंगे? भाजपा को यह समझना होगा कि संगठन को मजबूत करने के लिए सम्मान की राजनीति जरूरी है, लेकिन वह सम्मान पार्टी के अनुशासन और सामूहिकता की बुनियाद पर खड़ा होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर।



