आरक्षी अधीक्षक को दिए गए पत्र में जो लिखा है उसके अनुसार….
जमशेदपुर : मेरा नाम कुँवर सिंह उम्र 80 वर्ष, पिता स्व० ब्रहमदेव सिंह, काशीडीह लाईन नं० 13, होल्डिंग नं० 390, पोस्ट-साकची, जमशेदपुर का निवासी हूँ। मेरे तीन पुत्र है। भरत सिंह, अशोक सिंह, बिनोद सिंह मेरी पत्नी लीलावती देवी की वर्ष 2015 में कैंसर से मृत्यु हो गई। वर्तमान में अपने छोटे पुत्र बिनोद सिंह के साथ रहता हूँ। मैं टाटा स्टील का कर्मचारी था और वर्ष 2009 में सेवानिवृत हुआ। सेवानिवृत्त के मिले रूपयों को मैंने पुश्तैनी कच्चे मकान को तोड़कर तीन मंजिला बनाने में खर्च कर दिया। वर्तमान में मेरे पास कुछ नहीं है। परन्तु अक्सर मेरे बड़े बेटे भरत सिंह और मंझले बेटे अशोक सिंह और उनके परिवार के द्वारा पैसों के लिए मुझे यातना दी जाती है और प्रताड़ित किया जाता है। मेरी कैंसर पीड़ित पत्नी के साथ भी जब वह जीवित थी इनलोगों ने कई बार मारपीट की, जिसकी प्राथमिकी मैंने साकची थाने में दर्ज करवाई और ये सभी मामले न्यायालय में लंबित है।
अपनी पत्नी रेखा सिंह और बच्चों के साथ अशोक सिंह तीसरे तल्ले में रहते है और A.C., Washing Maching, Air Cooler, Freeze, L.E.D. सहित सारे आधुनिक इलेक्ट्रिक उपकरणों का इस्तेमाल करते है और साथ ही अपने तल्ले के आधे हिस्से को किराये पर देकर किरायेदार से बिजली का बिल वसूल कर खुद रख लेते है और खुद का बिजली का बिल भी नहीं देते है। बिजली का बिल मांगने पर हिंसा पर उतारू हो जाते है। श्रीमान् अब मैं 80 वर्ष का वृद्ध हो चुका हूँ और अब इनलोगों की यातना सहने की मुझमें और क्षमता नहीं है। मेरा देखभाल मेरे छोटे बेटे विनोद सिंह अच्छे से करते है और मैं बिनोद की सेवा और देखभल से संतुष्ट हूँ। मेरी कैंसर पीड़ित पत्नी की देखभाल और इलाज का सारा खर्च जब तक वह जीवित रही, बिनोद सिंह ने ही किया और इसी बात की नाराजगी भरत और अशोक को रही। मेरा एक ग्यारह वर्षीय पौत्र है, जो लोयोला का छात्र है, अक्सर ये लोग उसके अपहरण की धमकी देते है और मुझे डर है कि कहीं कोई अनहोनी न घट जाए। श्रीमान् मुझे मेरे दोनों बेटे भरत सिंह और अशोक सिंह एवं उनके परिवार के यातना से मुक्ति दिलाई जाए ताकि मैं अपना वृद्धावस्था की जो थोड़ी सी आयु शेष है उसे शांति से गुजार सकूँ।