जमशेदपुर : सेंट जोसफ़ महिला महाविद्यालय विशाखापटट्नम के द्वितीय भाषा हिंदी विभाग और द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय 6 जुलाई से 8 जुलाई 2022 तक हिंदी साहित्य मे वृध्द विमर्श अंतरराष्ट्रीय वेबनार जो वाजा संस्था. विशाखापटट्नम नई पीढी व मिडिल इस्टर्न इस्लामिक सट्डिस विभाग न्यूयार्क युनिवर्सिटी यूएसए के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया गया। जिसका मूल विषय हिंदी साहित्य मे वृध्द विमर्श के तहत तीन प्रमुख मुद्दों पर जो क्रमशः ““हिंदी कथा साहित्य मे वृध्दों का जीवन दर्शन””, -‘”वृध्दों का नवीन पीढियों के साथ समायोजन”” और हिंदी साहित्य में वृध्द महिलाओं की समस्याएँ तीन दिनों तक चले इस विमर्श मे विषय पर प्रबुध्द वक्ताओं के विचारों के साथ प्रपत्र वाचको व्दारा विमर्श को एक सुंदर दिशा प्रदान करते हुए समपन्न किया गया। प्रथम दिन सभी औपचारिकताओं के साथ जिसमें इस वेबनार से संबंधित उद्देश्य आदि के साथ प्रर्थना गीत के साथ जो इसी महाविधालय की छात्रा ऐंजलिना के गायन से आरंभ होने के पश्चात इस सेमीनार के उद्देश्य व इसकी वर्तमान परिपेक्ष्य में आवश्यकता के विषय मे इस कालेज की प्रोफेसर संयोजिका डा.पी.के. जयालक्ष्मी के बीज वक्तव्य के रूप में साहित्य के विभिन्न स्वरूपों पर वृध्द विमर्श पर बहुत से कहानीकारो, उपन्यासकारो का उलेख्ख करते हुए अपनी बात रखते हुए आगे मिडिल इस्टर्न इस्लामिक सट्डिस विभाग न्यूयार्क युनिवर्सिटी यू एस ए की प्रोफेसर गेब्रियेला नीक ईलिवा के अपने वक्तव्य मे उपन्यासकार यशपाल की दो कृतियों समय और आशीर्वाद के माध्यम से वृध्द जीवन के विकास और पतन, सकारात्मक्ता और नकारात्मक्ता का अति सुंदर विशलेषण करते हुए वृध्दावस्था की समस्याओं पर अपने विचार रखे समाज इसे बोझ न समझे और इस अवस्था का स्वागत करें मानव जीवन में यहाँ सभी को आना है ।पश्चात वाजा व नईपीढी के राष्ट्रीय सचीव शिवेन्द्र जी के व्धारा विषय पर अपनी बात रखी और वाजा के आन्ध्रप्रदेश के अध्यक्ष व्दारा साहित्य के दो शताब्दी से इस विषय पर कलम के सिपाही प्रेमचंद से लेकर नासीरा शर्मा की कहानियों का जिक्र करते हुए वसुदेवकुटुम्बकम की भूमिका रखी ।इसके पश्चात प्रपत्र वाचन के कार्यक्रम के संचालन के लिए डा.निर्मला जी का सार्थक संचालन सबी प्रपत्र वाचको के विषय के साथ उनकी टिप्पणी बहुत ही प्रभावी रही इस दौरान डा.जमूना जी ..मन्नूभंडारी जी के कहानियाँ विषय रही ,लिंगम चिरंजीव राव –वृध्दों के प्रति समाज का दायित्व के साथ वृध्दों को नयी पीढी डस्टबीन की तरह घरों मे समझती है पर विचार,डा. अनिता जी और अन्य वक्ताओ व्दारा विभिन्न साहित्य के संदर्भ में अपनी बात रखी और इस सत्र के समापन्न मे सभी का आभार जो इस सत्र मे उपस्थित रहे । डा.दिप्ती जी के समिक्षात्मक विचारो से सभी लाभान्वित हुए ।
अंतरराष्ट्रीय वेबनार के व्दितोय दिवस के सत्र में गौरी नायडू जी के व्दारा मंगलारती से आरंभ इस सत्र के सभी प्रमुख वक्तावों एवं सभी प्रतिभागियों ने वृध्द विमर्श पर महत्वपूर्ण साहित्य को घ्यान मे रख अपने व्याख्यान दिए ।जिसमें प्रमुख रूप से डॉ कृष्णबाबूजी ने अपने वक्तव्य की भूमिका में विष्णु शर्मा, चाणक्य एवं गांधीजी जैसे वृध्दो के व्दारा समाज मे परिवर्तन को किस प्रकार दिशा दी से अवगत कराते हुए आधुनिक कथा साहित्य में चित्रित वृद्ध जीवन की समस्याओं पर सोदाहरण प्रकाश डालते हुए बूढी काकी, बेटोवाली विधवा, चीफ की दावत जैसी कालजयी कथाओं का जिक्र भी किया उषाप्रियंवदा की वापसी और नासिरा शर्मा की कहानिय़ों को लिय़ा जो नकारात्मक भी है। समस्यावों के समाधान पर भी अपने सुझाव प्रस्तुत किये। प्रो .राजू जी ने भी तथाकथित वृध्द शब्द की व्याख्या एवं जीवन यात्रा में उसकी सहज अनिवार्यता को समझाते हुए युवा पीढ़ी एवं वृद्धों के जीवन में समयोजन की आवश्यकता पर अपने विचार प्रस्तुत किये।उसमें उन्होंने कहा की दुनिया उपयोगिता को ही स्वीकार करती है। नवीन पीढी के साथ भी चलना जरूरी है। सभी प्रतिभागियों ने वृद्ध जीवन में संभावित विभिन्न शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, पारिवारिक समस्याओं एवं तज्जनित आत्मनून्यता, आत्मविश्वास का लोप,दुविधा की स्थिति आदि कई समस्याओं का सोदाहरण चित्रण प्रस्तुत करते हुए उनके समाधानों की ओर भी दृष्टिपात किया है।डा.कविता शर्मा जी के विचार में भी बूढी काकी, पंचपरमेश्वर और बोटो वाली विधवा के विषय मे कहते हुए उन्होंने इस विमर्ष को युवा-वृध्द विमर्श रखने का सुझाव दिया। विशेष कर डॉ अनुपमा एवं ऐंजिलिना का मनोविज्ञानिक विश्लेषण एवं अर्पण जी के वक्तव्य में वृद्ध जीवन में सहज गोचर होनेवाली वृध्दों की सहज मानसिकता की अभिव्यक्ति एवम दीप्ति का ‘छत पर दस्तक’ कहानी में सूचित आत्मविश्वास युक्त समाधान अत्यन्त प्रभावोत्पादक एवं रोचक रहा। डा. जया निर्मला जी ,डा.जगदीश जी, डा.महालक्ष्मी ,डा.एस दिप्ति जी और डा.अपर्णा चतुर्वेदी जी के व्धारा समकालीन नयी सदी की लेखिकाओं के संदर्भ में अपने विचारों को रखते हुए विभिन्न साहित्यिक उदाहरण बहुत सार्थक रहे द्वितीय दिवस का यह सत्र विषय सफल रहा। सभी वक्तव्य बढ़िया रहे ।वर्तमान समय की नयी तकनीकि से उभरने वाली समस्याओं का भी वृध्द विमर्श में स्थान मिला। जयलक्ष्मी जी को सत्र के आद्यंत सफलता पूर्वक संयोजन के लिए विशेष बधाई। इस सत्र मे उपस्थित सभी लोगों को युवा एवं वृद्धों के जीवन में समायोजन स्थापित करने में बहुउपयोगी सिद्ध होगा।
त्रितीय दिवस के सत्र में विशेष वक्त के रूप में सभी प्रतिभागियों ने सत्र में वृद्ध जीवन की समस्यावों पर विभिन्न कहानियों के उदाहरण के माध्यम से प्रस्तुत किया।डा. जानकी जी, डा.आजाद जी और डॉ नीरजा जी ने अपने प्रपत्रों के माध्यम से समस्याओं के समाधान पर भी प्रकाश डाला है।जैन महोदया ने वृद्ध जीवन एवं युवा पीढ़ी की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए समायोजन की दिशा पर बहुत अच्छे ढंग से सुलझे विचार व्यक्त किये हैं। इसी सत्र मे डा.शांति मेडम जी ने अपने व्यक्तिगत रूप से कई वृध्दो की समस्याओं को सुलझाने के वृध्दा आश्रमों के अनुभवों को साझा करते हुए बहुत सारी बातों से अवगत कराते हुए बहुत जालकारी दी इसके पश्तात ।इस सत्र की प्रमुख वक्ता प्रोफेसर रजनी भार्गवा जी ने पश्चिमी एवं भारतीय परिवेश में वृद्ध जीवन की समस्याओं पर सुविस्रत वक्तव्य प्रस्तुत किया।उन्होंने स्पष्ट किया कि परिवेशगत भिन्नता , बाज़ारवाद की संस्कृति , अकेलापन एवं सामाजिक प्रभाव एवं अन्तर्द्वन्द्व आदि वृद्ध जीवन को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक हैं।उन घटकों के तहत वृद्ध जीवन की समस्याओं हल ढूंढने से समस्याओं को सर्वथा एक दिशा प्रदान हो सकेगा। किसी भी समस्या का हल ढूढंने के लिए सिक्के के दोनों पहलुवों पर विचार करना अनिवार्य होता है।विवेच्य सत्र में उसका अनुपालन सम्यक रूप से हुआ है।सत्र में प्रस्तुत गीत भी विषय के अनुकूल रहे। शिवेंद्र जी ने वेबनैर को सफ़ल बनाने में जी सब की सहयोगिता रही उनके प्रति औपचारिक आभार प्रदर्शित किया। तृतीय एवं अंतिम सत्र अत्यंत सफ़लता पूर्वक सम्पन्न हुआ।संत जोसफ महाविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्षा एवम वेबनार की आयोजिका आचार्या जयलक्ष्मी जी तथा उनके सहायक गण विशेष रूप से सभी बधाई के पात्र हैं।