झारखंड में पुलिस प्रताड़ना और नागरिकों की शिकायतों की निष्पक्ष जाँच हेतु अब जिला स्तर पर भी पुलिस शिकायत प्राधिकार का गठन जल्द सुनिश्चित किया जाएगा। यह कवायद भाजपा नेता एवं सूचना अधिकार एक्टिविस्ट अंकित आनंद की सतत पहल का परिणाम है।
बीते अप्रैल एवं जून महीने में अंकित आनंद ने डीजीपी कार्यालय को आरटीआई आवेदन भेजते हुए राज्य एवं जिला स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकार की सक्रिय कार्यशीलता पर सवाल उठाए थे और इसके गठन को लेकर विस्तृत जानकारी मांगी थी। इसके बाद डीजीपी कार्यालय हरकत में आया और झारखंड के सभी जिलों के एसएसपी, एसपी, आईजी और डीआईजी को निर्देश जारी किया गया कि वे अविलंब जिला समिति का गठन करें।
डीजीपी कार्यालय से पुलिस महानिरीक्षक (मुख्यालय) ने दिनांक 1 जुलाई 2025 को पत्र संख्या 1045 के माध्यम से यह निर्देश निर्गत किया। इसमें वर्ष 2016, 2020, 2023 और 2024 की पुरानी पत्रावलियों के साथ अंकित आनंद के ईमेल का भी विशेष उल्लेख किया गया है। इस पत्र की प्रति डीआईजी (कार्मिक) द्वारा दिनांक 9 जुलाई 2025 को पत्र संख्या 477 के तहत अंकित आनंद को सूचनार्थ भेजी गई है।
पुलिस शिकायत प्राधिकार की जिला समिति में कुल 5 सदस्य होंगे — जिनमें लोक व्यवहार में निपुण, स्वतंत्र, मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध 4 सदस्य होंगे (एक महिला और एक समाज के कमजोर वर्ग से होना अनिवार्य) और एक अपर पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी सदस्य सचिव होंगे। समिति की अध्यक्षता स्वतंत्र सदस्यों में से किसी एक को सौंपी जाएगी। इस समिति को जिला प्रशासन से सचिवीय सेवाएँ भी मिलेंगी।
यह समिति डीएसपी स्तर से नीचे के अधिकारियों के विरुद्ध “घोर अवचार” मामलों की शिकायतों की जाँच करेगी। अपनी शिफ़ारिशें अनुशासनिक अधिकारी को भेजेगी, जिसे तीन माह के भीतर कार्रवाई कर समिति को रिपोर्ट देना अनिवार्य होगा। डीएसपी से ऊपर के अधिकारियों के विरुद्ध जांच का अधिकार राज्य समिति के पास होगा।
इस महत्वपूर्ण पहल पर भाजपा नेता अंकित आनंद ने कहा —
“यह प्रशासनिक जवाबदेही की दिशा में एक निर्णायक कदम है। आम नागरिकों को अब पुलिस प्रताड़ना के मामलों में जिले स्तर पर भी न्याय की उम्मीद बंधेगी।” सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद वर्ष 2016 से अबतक जिला स्तरीय पुलिस शिकायत प्राधिकार समिति का गठन नहीं होना चिंताजनक है।
भाजपा नेता ने कहा कि, उनकी यह पहल न केवल पुलिस व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन की भी गारंटी बनती है। अब देखना यह होगा कि जिलों में समिति का गठन कितनी शीघ्रता से होता है और यह कितनी प्रभावी साबित होती है।
