RANCHI : झारखंड हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा है कि चेक बाउंसिंग के मामले NI Act की धारा 142 के तहत अपराधों का संज्ञान लेने के लिए पुलिस को रिपोर्ट करने की आवश्यकता नहीं होती है और न ही अदालत को शिकायत की जांच करने के लिए पुलिस को निर्देश देने का अधिकार है. NI Act की धारा 142(1)(ए) के तहत चेक अनादर के लिए धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान केवल लिखित शिकायत पर ही लिया जा सकता है. दरअसल याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह था कि उसने शिकायतकर्ता को 10 लाख 82 हजार 500 रुपये का चेक जारी किया था।
याचिकाकर्ता के खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं होने के वजह से वह चेक बाउंस हो गया. शिकायतकर्ता की ओर से चेक बाउंस होने के बाद कानूनी नोटिस भेजा गया, जिसके जवाब में याचिकाकर्ता ने कहा कि चेक बैंक में डालने से पहले शिकायतकर्ता को उसकी मंजूरी लेनी चाहिए थी. इसके बाद शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज की और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत पुलिस को रेफर करने की मांग की, इस शिकायत को मंजूर कर लिया गया. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 467, 468, 120बी और NI Act की धारा 138 के तहत दर्ज FIR रद्द करने की मांग की।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में यह तर्क दिया गया कि उनके खिलाफ जालसाजी का कोई आरोप नहीं है इसलिए प्राथमिकी रद्द होनी चाहिए. हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अनिल कुमार चौधरी की कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई।