जमशेदपुर : सहिस जुगसलाई का साहस है. लोकप्रियता घटी नही बल्कि बढ़ा है. क्षेत्र में चापलूस और दिग्भ्रमित करने वाले लोगो की वजह से 2019 के चुनाव में हुई हार से मिला सबक और तभी से लेकर आज तक क्षेत्र का विकास रुका है. लोगो के दिल में रामचंद्र सहिस के लिए जगह है और वही रहना चाहिए जीत हार से फर्क नही पड़ता है. जीत निश्चित ही क्षेत्र की समस्याओं के साथ लड़ने की शक्ति प्रदान करती है तो हार से बहुत कुछ सीखने को मिलता है और फिर उस कमियों को दूर कर नई ऊर्जा और लोगो के प्यार और स्नेह से फिर सेवा करने का अवसर मिलेगा।
श्री सहिस ने दमखम के साथ कोल्हान में आजसू का झंडा गाड़ दिया. 2014 में भी दुबारा विधानसभा का चुनाव जीते. श्री सहिस गरीब परिवार में पले-बढ़े और विपरित परिस्थितियों से जूझते हुए आगे बढ़े सातवीं क्लास में थे, तो पिता की मौत हो गयी. जमशेदपुर के रामकृष्ण मिशन उच्च विद्यालय में छात्रावास में रह कर पढ़ाई की कॉलेज की पढ़ाई में आर्थिक तंगी आड़े आ रही थी गांव में रहकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर आगे की पढ़ाई की गरीबी के कारण ग्रेजुशन नहीं कर सके।
सहिस बताते हैं. की घर पर मां ने बड़ी मुश्किल से पालन पोषण किया है घर के हालात ऐसे थे कि पढ़ाई छोड़ने पड़े सहिस गांव में रह कर युवाओं की गोलबंदी में जुट गये विवेकानंद के नाम पर संस्था चलाते हुए सामाजिक काम शुरू किया संस्था के माध्यम से सामाजिक कार्य करते हुए क्षेत्र में पहचान बनी 1997 में नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय सेवा कार्य से जुड़े।
सामाजिक काम में मन रम गया. इधर लोकप्रियता बढ़ी, तो समस्याओं को लेकर मुखर हुए युवाओं की टोली बना कर जनहित के मुद्दे पर सड़क पर आंदोलन शुरू किया बिजली, पानी सहित अन्य जनसमस्याओं के खिलाफ लड़ते हुए जनता के बीच विश्वास कायम किया।
विधायक सहिस कहते हैं कि जुगसलाई की जनता ने पहले ही जिम्मेवारी दी थी अब सरकार में नयी जवाबदेही मिल रही है. वे कहते हैं पीछे के जीवन की ओर मुड़ कर देखता हूं, तो अपने संघर्ष याद आते हैं मां ने जीवन में बहुत संघर्ष किया है. आज वह बहुत खुश होंगी पार्टी ने मुझ पर भरोसा किया है मेरी पार्टी हमेशा युवा को मौका देती रही है 34 वर्ष की आयु से राजनीति कर रहा हूं कभी नहीं सोचा था कि इस मुकाम पर पहुंच सकूंगा, लेकिन सबकुछ जनता के सहयोग से संभव हुआ है।
सब्जी व लकड़ी बेच कर मां ने सहिस को कराया मैट्रिक….
रामचंद्र सहिस का जन्म 15 जनवरी 1975 को पूर्वी सिंहभूम के बोड़ाम प्रखंड के मुचीडीह गांव में किसान परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम विजय सहिस व मां का नाम लख्खी सहिस है. मां ने बताया कि 1987 में पति की मौत के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए बोड़ाम बाजार में सब्जी बेची. इसके अलावा दलमा जंगल से लकड़ी लाकर हाट-बाजार में बेचा करती थी. इससे किसी तरह दो वक्त की रोटी नसीब होती थी. यह भी बताया कि कभी-कभार तो रात के वक्त भूखे पेट सोना पड़ता था।
गरीबी में लड़ा पहला चुनाव…..
2009 में जब रामचंद्र सहिस को आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो ने टिकट दिया था तो उस वक्त कोई दावे के साथ नहीं कह सकता था कि जीत रामचंद्र सहिस की होगी. चुनाव मैदान में उतरे रामचंद्र सहिस के पास चुनाव प्रचार की बात तो दूर, खाने-पहनने और रहने तक के लिए पैसे नहीं थे. रात को सड़क किनारे चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल होनेवाली गाड़ी में ही सोते थे. कभी खरकई, तो कभी डिमना लेक में नहाकर वे अपनी दिनचर्या शुरू करते थे. उनके पास दो वक्त के खाने के पैसे नहीं थे, वे भला कार्यकर्ताओ को क्या खिलाते. आजसू पार्टी के कार्यकर्ताओं को सुदेश महतो ने मैनेज किया. उनके समर्थन में पटमदा में तीन और गोविंदपुर में एक सभा की।
करोड़पति मंत्री को हराकर बने विधायक…..
रामचंद्र सहिस ने करोड़पति मंत्री और तीन बार के विधायक दुलाल भुइयां को हराकर पहली बार विधानसभा में कदम रखा. सहिस के घर पर लोगों का लगा तांता रामचंद्र सहिस के मंत्री बनने की खबर से मानगो स्थित आवास पर बधाई देनेवाले कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों का तांता लगा रहा. श्री सहिस ने कहा कि देश व समाज की सेवा करने का अवसर मिला है. लोगों के विश्वास को टूटने नहीं देंगे।
2009 में जहा रामचंद्र सहिस को बगैर भाजपा के 42810 वोट मिले थे और भाजपा प्रत्यासी राखी राय को 3482 वोट से हराए थे वही 2014 में 82302 वोट मिले थे और मंगल कालिंदी को 25042 वोट से पटखनी देते हुए दो बार लगातार चुनाव जीत निर्वाचित हुए थे. और तीसरे बार सरकार के कामकाज के विपरीत लोगो ने वोट किया था और वैसे परिस्थिति में भी आजसू अपने दम खम से 46779 वोट प्राप्त किए थे।