जमशेदपुर : जमशेदपुर शहर के डोबो क्षेत्र में स्वर्णरेखा नदी के तट पर बसाया जा रहा एक सपना अब हकीकत से टकरा रहा है—और यह टक्कर बेहद भयावह हो सकती है। ‘रिवेरा’, एक हाई-प्रोफाइल, अत्याधुनिक मल्टी-हाउसिंग सोसाइटी, जो शहर के अमीर तबके के लिए डिजाइन की गई है, आज खतरे के मुहाने पर खड़ी है।
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यह वही रिवेरा है जहां सैकड़ों डुप्लेक्स फ्लैट बन रहे हैं। हर फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपये से कम नहीं है। इस सोसाइटी में शहर के नामचीन व्यवसायी, डॉक्टर, अफसर और बड़े कारोबारी वर्ग ने फ्लैट बुक कराए हैं। यह पूरा प्रोजेक्ट आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस है—स्विमिंग पूल, गार्डन, क्लब हाउस, हाई-सिक्योरिटी सिस्टम, और स्वर्णरेखा के खूबसूरत तट का मनमोहक दृश्य। लेकिन अब यही तट इस लग्ज़री सपने के लिए एक भयानक खतरा बनता जा रहा है।
मानगो पुल के पास, जहां से यह सोसाइटी लगी हुई है, स्वर्णरेखा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों से हो रही भारी बारिश ने नदी को उफान पर ला दिया है। जलस्तर खतरे के निशान को पार कर चुका है और बहाव की दिशा नवनिर्मित रिवेरा प्रोजेक्ट की ओर झुकती नजर आ रही है। लोगों में दहशत है कि अगर पानी का बहाव और तेज हुआ या किसी भी तरह की बाढ़ आई, तो पूरा निर्माण क्षेत्र खतरे में आ सकता है।
बड़ी चिंता यह है कि यह प्रोजेक्ट नदी तट से सटा हुआ है, और किसी भी प्राकृतिक हलचल का सबसे पहला प्रभाव इसी पर पड़ सकता है। स्थानीय लोगों और पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि निर्माण से पहले नदी के व्यवहार और बाढ़ क्षेत्र का उचित अध्ययन नहीं किया गया। जिस क्षेत्र में यह डुप्लेक्स कॉलोनी बसाई जा रही है, वह पारंपरिक रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्र माना जाता रहा है।
रिवेरा प्रोजेक्ट के लिए बड़े पैमाने पर जमीन का लेवल उठाया गया, भारी-भरकम कंक्रीट स्ट्रक्चर खड़े किए गए, लेकिन सवाल यह है कि क्या नींव इतनी मजबूत है कि वह स्वर्णरेखा के प्रचंड वेग को झेल सके? यदि जलस्तर और बढ़ता है, तो नदी अपने प्राकृतिक बहाव को तोड़े बिना नहीं रहेगी और ऐसे में करोड़ों का यह निर्माण कार्य कुछ ही घंटों में तबाही में बदल सकता है।
रिवेरा में जिन लोगों ने फ्लैट और डुप्लेक्स खरीदे हैं, उनकी चिंताएं दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। यह वे लोग हैं जिन्होंने जीवन भर की कमाई लगाई है, बैंक से भारी कर्ज लिया है, और अपने रिटायरमेंट या बच्चों के भविष्य के सपनों को इसी आशियाने से जोड़ा है। आज वे हर घंटे बाद नदी के बहाव और मौसम की खबर पर निगाह टिकाए बैठे हैं।
इस प्रोजेक्ट को लेकर सबसे बड़ा सवाल अब प्रशासन पर उठता है। आखिर स्वर्णरेखा जैसी नदी के इतने समीप निर्माण की अनुमति कैसे दी गई? क्या इसके लिए पर्यावरणीय स्वीकृति ली गई थी? क्या आपदा प्रबंधन की कोई तैयारी थी? या फिर यह सब कुछ केवल बिल्डरों के मुनाफे और राजनीतिक रसूख के इर्द-गिर्द घूमता रहा?
रिवेरा प्रोजेक्ट अब विकास और लालच की टकराहट का प्रतीक बन गया है। प्रशासन मौन है, बिल्डर कोई बयान नहीं दे रहे, और निवेशक डर में जी रहे हैं। ऐसे में अगर कुछ अप्रत्याशित हो गया, तो न केवल करोड़ों की संपत्ति बर्बाद होगी, बल्कि प्रशासनिक संवेदनशीलता पर भी सवाल खड़े होंगे।
रिवेरा का भविष्य अब इस बात पर निर्भर है कि मौसम कैसा रहेगा और प्रशासन कितना सजग होता है। फिलहाल, यह शानदार रिवरफ्रंट हाउसिंग सोसाइटी ‘स्वप्नलोक’ से निकल कर ‘संकटलोक’ में प्रवेश कर चुकी है। अगर जल्द ही पुख्ता कदम नहीं उठाए गए, तो रिवेरा सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि शहर की सबसे महंगी भूल बनकर इतिहास में दर्ज हो सकता है।
