जमशेदपुर : रविवार की दोपहर पत्रकारिता जगत में बड़ा और दुखद खबर आया आजाद सिपाही के प्रधान संपादक रांची के प्रख्यात वरिष्ठ पत्रकार हरिनारायण सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। यह केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है, बल्कि एक युग का अंत है, जो जनपक्षधर पत्रकारिता, निर्भीक लेखनी और पत्रकारिता की गरिमा को सहेजते हुए बीता। चार दशक से अधिक समय तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहे हरिनारायण सिंह ने न केवल अखबारों के पन्ने भरे, बल्कि समाज को देखने, सोचने और बदलने की दृष्टि दी। प्रभात खबर, हिन्दुस्तान और अंततः आजाद सिपाही में उनकी उपस्थिति सिर्फ नामभर की नहीं थी—वे संस्थानों की आत्मा हुआ करते थे। एक सच्चे पत्रकार की तरह उन्होंने कलम को न झुकने दिया, न बिकने दिया। उनकी लेखनी में जन-सरोकार की गूंज, व्यवस्था पर सीधा प्रहार, और सामाजिक न्याय की जिजीविषा थी। उनकी रिपोर्टिंग और संपादकीय दृष्टिकोण में हमेशा यह आग्रह रहा कि पत्रकारिता सत्ता की गोद में नहीं, समाज की ज़मीन पर बैठकर होनी चाहिए। हरिनारायण सिंह सिर्फ खबरों के संकलक नहीं थे, वे विचारों के निर्माता भी थे। वे उन विरले पत्रकारों में शामिल रहे जिन्होंने पत्रकारिता को नौकरी नहीं, धर्म माना। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने पत्रकारिता को व्यवसाय नहीं, सेवा और संघर्ष का माध्यम बनाया।
आज जब मीडिया का एक बड़ा हिस्सा बाज़ारी हवाओं में बह रहा है, हरिनारायण सिंह जैसे पत्रकारों की कमी और भी ज्यादा खलती है। वे निर्भीक थे, स्पष्टवादी थे और असहमति से डरते नहीं थे। उन्होंने कई युवा पत्रकारों को न केवल मौका दिया, बल्कि उन्हें अपने मूल्य गढ़ने की आज़ादी भी दी। उनके निधन से जो रिक्तता बनी है, वह केवल एक संस्था या अख़बार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे पत्रकारिता जगत को संवेदनशीलता, प्रतिबद्धता और निष्ठा की याद दिलाती है। आज जब हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, यह भी जरूरी है कि हम उनके मूल्यों को जीवित रखें—उनका रास्ता अपनाएं, न कि केवल स्मृति। हरिनारायण सिंह भले ही शारीरिक रूप से इस संसार से विदा हो गए हों, लेकिन उनका लिखा हुआ, उनके विचार और उनकी सिखाई पत्रकारिता की रीति, हमेशा जीवित रहेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और हमें उनके पदचिह्नों पर चलने की प्रेरणा।
