नवरात्रि : दशहरा को देखते हुए देश भर में जगह-जगह मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने का काम शुरू हो गया है। कलाकार अपनी कला का जादू दिखाने में जुटे हुए हैं। मां दुर्गा की प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। कहा जाता है कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी के बिना मां दुर्गा की प्रतिमा हमेशा अधूरी होती है। खास बात यह है कि मूर्ति बनाने के लिए मूर्तिकार वेश्यालय से भीख मांग कर वहां की मिट्टी लाते हैं। आईए जानते हैं कि मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी के इस्तेमाल की परंपरा क्यों है और इसके पीछे की कहानी क्या है?
कहा जाता है कि दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार वेश्यालय जाकर वेश्याओं से भीख में मांग कर उनके आंगन की मिट्टी लाते हैं। वेश्याओं से एक मूर्तिकार तब तक भीख मांगता है जब तक कि उसे मिट्टी नहीं मिल जाती है। प्राचीन काल में इस प्रथा का हिस्सा मंदिर का पुजारी होता था, समय बदला पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी लाने लगे। इसके अलावा, एक कहानी यह भी है कि एक वेश्या मां दुर्गा की भक्त थी, जिसका समाज में तिरस्कार होता था। वेश्या को तिरस्कार से बचाने के लिए दुर्गा मां ने उसे वरदान दिया कि उसके आंगन की मिट्टी के इस्तेमाल के बिना दुर्गा की मूर्ति पवित्र नहीं मानी जाएगी।
वेश्यालय की मिट्टी को भावनाओं और संवेदनाओं का प्रतीक माना जाता है। इस प्रथा का एक बड़ा उद्देश्य सामाजिक जागरूकता और सम्मान को बढ़ावा देना है। वेश्यालय में काम करने वाली महिलाओं के प्रति समाज में अक्सर भेदभाव और अवहेलना का सामना करना पड़ता है। वेश्यालय की मिट्टी को पवित्र और शुद्ध माना जाता है, क्योंकि यहां रहने वाली महिलाएं अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करती हैं और फिर भी वे अपनी पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखती हैं। इसके अलावा, मिट्टी को दुर्गा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय के खिलाफ लड़ती हैं। मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को भी जोड़ता है। वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग करके बनाई गई प्रतिमाएं न केवल भव्य होती हैं, बल्कि इनमें एक विशेष आत्मा भी होती है। बता दें कि यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जब वेश्यालय की मिट्टी को देवी की प्रतिमा बनाने के लिए उपयोग किया जाता था।