दिल्ली : भारत सरकार ने देश भर में एयर कंडीशनर (AC) के न्यूनतम तापमान को 20°C निर्धारित करने का निर्णय लिया है। यह नियम ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से लागू किया गया है। अब नागरिक 20°C से कम या 28°C से अधिक तापमान पर अपने AC का उपयोग नहीं कर सकेंगे। यह कदम बढ़ती बिजली खपत और ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे को देखते हुए उठाया गया है।
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों तथा ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि भारत में भीषण गर्मी के चलते एसी के अत्यधिक उपयोग से बिजली की मांग में तेज़ बढ़ोतरी हो रही है। इस कारण ‘तापमान मानकीकरण’ को लागू करना आवश्यक हो गया है।
AC Temperature Control क्यों है जरूरी
- बिजली की बचत और ऊर्जा दक्षता
बहुत से लोग AC को 16°C जैसे कम तापमान पर चलाते हैं, जिससे बिजली की अत्यधिक खपत होती है। ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) के अनुसार, AC के तापमान में 1°C की वृद्धि से बिजली की खपत में लगभग 6% की कमी आती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति AC को 16°C की बजाय 26°C पर सेट करता है, तो 60% तक बिजली बचाई जा सकती है।
- पर्यावरण संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में कमी
TERI (The Energy and Resources Institute) के अनुसार, एसी को 24°C या उससे अधिक तापमान पर चलाने से कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भारत में एसी की औसत एफिशिएंसी 2015 के स्तर से 30% बढ़ जाती है, तो 2030 तक हर वर्ष CO₂ उत्सर्जन में 180 मिलियन मीट्रिक टन की कमी आ सकती है।
- ग्लोबल ट्रेंड्स और भारत की स्थिति
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया-भर में लगभग 2 अरब एसी यूनिट्स उपयोग में हैं, जिनमें से 50% अमेरिका और चीन में हैं। वैश्विक स्तर पर इमारतों में उपयोग की जाने वाली कुल बिजली का 20% हिस्सा सिर्फ कूलिंग सिस्टम्स जैसे AC, पंखों और वेंटिलेशन सिस्टम्स में खपत होता है।
भारत में प्रतिवर्ष 1 से 1.5 करोड़ नई AC यूनिट्स इंस्टॉल की जाती हैं। यदि यही प्रवृत्ति जारी रही, तो 2030 तक भारत में एसी की वजह से 120 गीगावाट और 2035 तक 180 गीगावाट पीक पावर डिमांड हो सकती है, जो देश की कुल बिजली मांग का 30% तक हो सकता है।
- रेफ्रिजरेंट गैसें और जलवायु परिवर्तन
पहले एसी में क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (CFCs) का उपयोग होता था, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते थे। अब इनकी जगह हाइड्रो-फ्लोरो-कार्बन (HFCs) और हाइड्रो-क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (HCFCs) ने ले ली है। यद्यपि ये ओजोन परत को क्षति नहीं पहुंचाते, लेकिन ये ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में इन्फ्रारेड विकिरण को रोककर पृथ्वी के तापमान को बढ़ाती हैं।
Our World in Data की रिपोर्ट के अनुसार, एसी वैश्विक बिजली खपत का 7% हिस्सा लेते हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि बढ़ती कूलिंग डिमांड जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक बनती जा रही है।
