जम्मू-कश्मीर : पहलगाम में मंगलवार को हुए दिल दहला देने वाले आतंकी हमले में कम से कम 28 पर्यटकों की जान चली गई, जिनमें बिहार के खुफिया ब्यूरो (IB) के अधिकारी मनीष रंजन भी शामिल हैं। यह हमला घाटी में 1990 के दशक के बाद से पर्यटकों पर सबसे भयावह हमला बताया जा रहा है। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े समूह द रेसिस्टेंस फ्रंट ने ली है, जिसे ISI का समर्थन प्राप्त बताया जा रहा है।
IB अधिकारी मनीष रंजन की पहलगाम यात्रा के दौरान हत्या
मूल रूप से बिहार से ताल्लुक रखने वाले और हैदराबाद में तैनात मनीष रंजन छुट्टी पर अपने परिवार के साथ पहलगाम घूमने आए थे। वह अपनी Leave Travel Concession (LTC) के तहत छुट्टियां मना रहे थे। आतंकियों ने मनीष रंजन को उनके परिवार के सामने गोली मार दी। उनकी पत्नी और बच्चे इस हमले में बच गए हैं, हालांकि उनकी स्थिति को लेकर अभी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। रंजन पिछले दो वर्षों से खुफिया ब्यूरो के मंत्री खंड में कार्यरत थे।
जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों पर सबसे बड़ा आतंकी हमला
यह आतंकी हमला Article 370 के हटाए जाने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। इसके चलते जम्मू-कश्मीर के पर्यटन उद्योग पर एक बार फिर संकट मंडराने लगा है। इस हमले ने एक बार फिर घाटी की सुरक्षा व्यवस्था और पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हमले के समय और तरीके से यह स्पष्ट होता है कि इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर मुद्दे को फिर से उठाना है।
आतंकवाद के पीछे अंतरराष्ट्रीय रणनीति
यह हमला ऐसे समय में हुआ है, जब अमेरिका की उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की आधिकारिक यात्रा पर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस हमले की टाइमिंग यह दर्शाती है कि आतंकियों का मकसद कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना है। यह रणनीति वर्ष 2000 के चिट्टीसिंहपोरा नरसंहार की याद दिलाती है, जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से ठीक पहले 36 सिखों की निर्मम हत्या कर दी गई थी।
हाल ही में पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर द्वारा दिए गए बयानों से भी संकेत मिलता है कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद को एक बार फिर सक्रिय किया जा रहा है। यह हमला उसी नीति का हिस्सा प्रतीत होता है।
कश्मीर में बढ़ती आतंकवादी घटनाओं पर चिंता
यह आतंकवादी हमला न केवल जम्मू-कश्मीर की संवेदनशीलता को उजागर करता है बल्कि भारत की आतंरिक सुरक्षा नीति पर भी एक गहरा प्रश्नचिह्न लगाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों की गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक घाटी में स्थायी शांति की उम्मीद करना मुश्किल होगा।
