जमशेदपुर : कार्यक्रम का शुभारंभ दिनकर जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। संस्थान के प्राचार्य एवं शिक्षकगणों ने दिनकर जी के साहित्यिक योगदान और उनके राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत काव्य की महत्ता पर प्रकाश डाला।

एडवोकेट निखिल कुमार ने संबोधित करते हुए कहा छात्रों ने कवितापाठ, भाषण एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से दिनकर जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्ताओं ने कहा कि दिनकर जी की कविताएँ आज भी युवा पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम, संघर्ष और कर्तव्यनिष्ठा के लिए प्रेरित करती हैं।।रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (23 सितम्बर 1908 – 24 अप्रैल 1974) हिंदी साहित्य के महान राष्ट्रकवि, विचारक एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म बिहार के सिमरिया गाँव (बेगूसराय) में हुआ।उनकी कविताओं में ओज, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की झलक मिलती है। प्रमुख कृतियों में “रश्मिरथी”, “परशुराम की प्रतीक्षा”, “हुंकार” और “उर्वशी” शामिल हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनकी कविताएँ युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। दिनकर जी राज्यसभा के सदस्य भी रहे और भारत सरकार में हिंदी सलाहकार समिति के अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे।
कार्यक्रम का समापन
कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रशिक्षकों ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ समारोह का समापन हुआ।नारायण आईटीआई, लुपुंगडीह में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जयंती बड़े ही श्रद्धा एवं गरिमा के साथ मनाई गई।इस अवसर पर मुख्य रूप से मौजूद रहे एडवोकेट निखिल कुमार,शांति राम महतो, प्रकाश महतो, शुभम साहू, देवाशीष मंडल, शशि भूषण महतो,पवन कुमार महतो, अजय मंडल, कृष्ण पद महतो, गौरव महतो, आदि मौजूद रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ दिनकर जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। संस्थान के प्राचार्य एवं शिक्षकगणों ने दिनकर जी के साहित्यिक योगदान और उनके राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत काव्य की महत्ता पर प्रकाश डाला।
छात्रों ने कवितापाठ, भाषण एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से दिनकर जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वक्ताओं ने कहा कि दिनकर जी की कविताएँ आज भी युवा पीढ़ी को राष्ट्रप्रेम, संघर्ष और कर्तव्यनिष्ठा के लिए प्रेरित करती हैं।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (23 सितम्बर 1908 – 24 अप्रैल 1974) हिंदी साहित्य के महान राष्ट्रकवि, विचारक एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म बिहार के सिमरिया गाँव (बेगूसराय) में हुआ। उनकी कविताओं में ओज, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की झलक मिलती है। प्रमुख कृतियों में “रश्मिरथी”, “परशुराम की प्रतीक्षा”, “हुंकार” और “उर्वशी” शामिल हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनकी कविताएँ युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं।
दिनकर जी राज्यसभा के सदस्य भी रहे और भारत सरकार में हिंदी सलाहकार समिति के अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे। कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रशिक्षकों ने किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ समारोह का समापन हुआ।



