जमशेदपुर : कोल्हान में झामुमो के एक प्रवक्ता ने कल पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को लेकर अपनी घटिया मानसिकता और सोच को जाहिर किया। कोई उनसे पूछे कि झारखंड आंदोलन के दो शीर्ष व्यक्तित्वों के रिश्तों पर सर्टिफिकेट जारी करने वाले वे कौन होते हैं? उस वक्त तो आपका जन्म भी नहीं हुआ होगा, जब से वे लोग अलग राज्य के लिए आंदोलन कर रहे थे। लगातार कई वर्षों तक जंगलों, पहाड़ों और सुदूर गांवों में अलग राज्य के लिए आंदोलन करने वालों के संघर्ष को आप जैसे एयर कंडीशंड कमरों में बैठ कर बकवास करने वाले लोग कभी नहीं समझ सकते।


जिस पार्टी को चंपाई दा ने बनाया, जिसके संगठन को बनाने के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया, आज झामुमो उनका इस स्तर पर अपमान करने का दुस्साहस करेगी, यह तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। झामुमो में रहते हुए उन्होंने इसी सोच और मानसिकता के खिलाफ सार्वजनिक बयान जारी किया था, और उसके बावजूद, जब पार्टी के स्तर पर कोई जवाब नहीं मिला, तो वे पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। अपने बयान तथा इस्तीफे में भी उन्होंने सारी बातें स्पष्ट की थीं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कल्पना मैडम को आगे आकर बताना चाहिए कि क्या वरिष्ठ लोगों का अपमान ही झामुमो की नीति बन गई है। आप लोग तो हर मंच पर उनके पैर छूते थे ना? फिर उनके अपमान पर आप क्यों चुप हैं? क्या इसमें आपकी भी सहमति है?
जिस व्यक्ति ने विषम परिस्थितियों में झामुमो को टूटने और सरकार को गिरने से बचाया, जिनके द्वारा लाए गए मईया सम्मान, 200 यूनिट मुफ्त बिजली, हर प्रखंड में डिग्री कॉलेज एवं किसान ऋण माफी जैसी योजनाओं की वजह से पार्टी दोबारा सत्ता में आई, क्या उन्हें इन सबका यही सिला मिलेगा?
एक ऐसा व्यक्ति, जिसे जनता ने झारखंड टाइगर की उपाधि दी हो, जो 365 दिन, 24 घंटे जनसेवा में जुटा रहता हो, और साढ़े चार दशकों के सार्वजनिक जीवन में जिस पर भ्रष्ट्राचार अथवा किसी भी तरह का गंभीर आरोप नहीं हो, उन पर सवाल उठाने या उनका अपमान करने की आपकी हैसियत ही नहीं है।
प्रवक्ता महोदय, आप जैसे “हर चुनाव से पहले पार्टी बदलने वाले लोगों” की स्वार्थ एवं निजी महत्वाकांक्षा के सिवा कोई विचारधारा नहीं होती। तो अगली बार ऐसा दुस्साहस मत कीजिएगा। जनता इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। किसी के निजी जीवन पर अंगुली मत उठाईये, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव के समय के आपके कार्यकलापों पर अगर सार्वजनिक चर्चा शुरू हो जाए, तो नैतिकता का मुखौटा उतर जायेगा।
वैसे ये बड़बोले प्रवक्ता वोटर लिस्ट और आधार कार्ड का जिक्र कर रहे थे, तो क्या हम लोग झामुमो के उन लोगों की लिस्ट दें, जो अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर चुनाव लड़ रहे हैं? क्या गांडेय से शुरुआत करें? है हिम्मत?
आधार कार्ड और वोटर कार्ड की बातें उन लोगों के मुंह से शोभा नहीं देती, जिनकी पार्टी आधिकारिक तौर पर एसआईआर का विरोध करती है। जिस पार्टी ने लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा राज्य की डेमोग्राफी बदलने के प्रयासों का समर्थन किया है, वे लोग कागजों पर क्या बात करेंगे?
इसी प्रवक्ता के अपने विधानसभा क्षेत्र के चाकुलिया में चार हजार से ज्यादा फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनाए गए, इस बात को उपायुक्त ने भी स्वीकार किया, लेकिन उनके परिवारों को खोजने अथवा उन पर कार्रवाई करने की जगह, मामले की लीपा-पोती कर दी गई। क्या इनमें साहस है कि उस मुद्दे पर कुछ बोल सकें?
आदिवासियों के हितैषी बनने का दंभ भरने वाले ये लोग यह बताएं कि नगड़ी में आदिवासी-मूलवासी किसानों की जमीन कौन छीन रहा था? उस पर बाड़ लगा कर घेरा बंदी का काम किस सरकार ने किया?
संथाल परगना से लेकर छोटानागपुर एवं कोल्हान तक, राज्य की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है। आज घाटशिला में बाकी समुदायों की तुलना में एक विशेष समुदाय के वोटर कई गुना बढ़े हैं, भूमिपुत्रों की जमीनें लूटी जा रही हैं, लेकिन सरकार खामोशी से सब देख रही है। पाकुड़ में आज दो-तिहाई लोग एक विशेष समुदाय के हैं, तो एसपीटी एक्ट लागू होने के बावजूद वे लोग किस की जमीन पर बसे हैं? और कैसे? किस के संरक्षण में?
लेकिन जब केंद्र सरकार वैसे लोगों की पहचान करने तथा इसे रोकने के लिए एसआईआर लाती है तो सत्ताधारी दल के लोग वोट बैंक के लिए उसका विरोध करते हैं। अपनी माटी, मातृभूमि और यहां के आदिवासियों- मूलवासियों को धोखा दे रहे ये लोग जल, जंगल, जमीन तथा आदिवासियत पर भाषण ना ही दें, तो बेहतर होगा।



