RANCHI : झारखंड सरकार को केंद्र का पत्र मिलने के बाद अनुराग गुप्ता के डीजीपी बने रहने पर संशय की स्थिति है। राज्य सरकार उन्हें डीजीपी बनाए रखेगी या वे रिटायर होंगे, इस पर बुधवार को फैसला होने की संभावना है। क्योंकि बुधवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके अपर मुख्य सचिव अविनाश कुमार के विदेश दौरे से रांची लौटने की उम्मीद है। मंगलवार को गृह विभाग में डीजीपी को लेकर फाइल ऊपर-नीचे होती रही।
सूत्रों के मुताबिक सरकार कई विकल्पों पर काम कर रही है। विचार हो रहा है कि अनुराग गुप्ता को डीजीपी पद पर बनाए रखते हुए केंद्र से पुनर्विचार का आग्रह किया जाए। उधर सुप्रीम कोर्ट में भी एक मामला है। केंद्र के पत्र के आधार पर वहां भी पिटिशन दायर कर फिलहाल अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाए रखने पर विचार हो रहा है। अगर केंद्र सरकार को पत्र भेजने पर सहमति नहीं बनती है तो किसी नए डीजीपी का चयन किया जा सकता है। ऐसे में वे रिटायर हो जाएंगे। हालांकि अंतिम फैसला मुख्यमंत्री के आने के बाद ही होगा। वहीं केंद्र के निर्णय पर आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार के पास हाईकोर्ट जाने का भी विकल्प है। लेकिन इसके लिए सिर्फ बुधवार का ही समय है। फिर यह कोर्ट पर निर्भर करेगा कि वह बुधवार को सुनवाई करेगा या नहीं। इस विषय में पूर्व के सभी नोटिफिकेशन का भी अध्ययन किया जा रहा है। विधिक राय भी ली जा रही है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर अनुराग गुप्ता को 30 अप्रैल के बाद डीजीपी बनाए रखने के फैसले को गलत बताते हुए कहा है कि उन्हें 30 अप्रैल को रिटायर करें।
डीजीपी के प्रमाणपत्रों की जांच की मांग पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित…
झारखंड हाईकोर्ट में मंगलवार को डीजीपी अनुराग गुप्ता, आईपीएस प्रिया दुबे व संतोष दुबे के प्रमाणपत्रों की जांच की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। अरुण कुमार ने जनहित याचिका दाखिल कर इनके प्रमाण पत्रों की जांच का आदेश देने का आग्रह किया है। इसमें कहा गया है कि अफसरों के पीजी स्तर के प्रमाण पत्र गलत हैं। इसलिए, सभी प्रमाण पत्रों की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए। अदालत ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। हालांकि, सुनवाई के दौरान अदालत ने इस तरह के मामलों में जनहित याचिका दाखिल करने पर नाराजगी जताते हुए याचिकाकर्ता को फटकार भी लगाई।
नियमित डीजीपी बनाए जाने के बाद दो माह ही बची थी नौकरी
भारतीय पुलिस सेवा में 30 वर्ष की नौकरी पूरा करने वाले आइपीएस अधिकारी को डीजी रैंक में प्रोन्नति मिलती है, जो डीजीपी बनने की योग्यता रखते हैं। प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार के केस में सर्वोच्च न्यायालय के जिस फैसले के आधार पर डीजीपी की नियुक्ति होती है, उसमें संबंधित आइपीएस अधिकारी की कम से कम छह महीने की नौकरी बची होनी चाहिए, उसे ही डीजीपी बनाया जा सकता है वह भी दो साल के लिए।
अनुराग गुप्ता राज्य सरकार की नियमावली के आधार पर दो फरवरी 2025 को नियमित डीजीपी बने थे। यानी, सेवानिवृत्ति तिथि से केवल दो माह पहले। अगर उस नियमावली को भी माना जाय तो वे डीजीपी बनने की योग्यता नहीं रखते थे।
सरकार के पास नहीं है वक्त
अनुराग गुप्ता मामले में अब राज्य सरकार के पास केवल बुधवार का वक्त है। सरकार अगर हाई कोर्ट जाएगी भी तो उसे बुधवार को ही सुनवाई का आग्रह करना होगा। यह कोर्ट पर निर्भर करता है। दूसरा यह है कि अगर अनुराग गुप्ता को डीजीपी पद पर बनाए रखेगी तो केंद्र सरकार उनके वेतन को रोक सकता है। केंद्र व राज्य सरकार के बीच तकरार बढ़ेगा।
राज्य सरकार अनुराग गुप्ता को सेवानिवृत्त भी करती है तो फिलहाल, किसी दूसरे सीनियर आइपीएस अधिकारी को प्रभारी डीजीपी बनाएगी। डीजीपी के रेस में 1990 बैच के आइपीएस अधिकारी अनिल पाल्टा, 1992 बैच के आइपीएस अधिकारी प्रशांत सिंह व 1993 बैच के आइपीएस अधिकारी एमएस भाटिया हैं। सबकी नजरें राज्य सरकार के निर्णय पर टिकी है।


















