पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप मे मनाया जाता है, आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया!
इसके बाद हिंदी को बढावा देने के उद्देश्य से राजभाषा प्रचार समिति के सुझाव पर प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा!
हिन्दी यानी राजभाषा या हमारी मातृभाषा!
मेरे समझ से देश के व्यापक क्षेत्रों या राज्यों में अपनी विचारों की अभिव्यक्ति या संवाद का सबसे उतम भाषा हिंदी है! हिन्दी बोलने, लिखने तथा समझने में सक्षम लोग देश के किसी भी कोने में मिल जाएंगे!
हिन्दी भाषा देश के कुछ हिन्दी भाषी राज्यों को छोड़कर देश के तकरीबन बीस राज्यों के लिए उनकी द्वितीयक भाषा है!
यदि इस बात की गणना की जाए, कि देश में कितने हिन्दी लोग जानते या समझते हैं तो शायद ही कोई भाषा हिंदी के आसपास फटके!
हिन्दी हमारी भाषा ही नहीं है, बल्कि देश की मिट्टी की स्वाभिमान और सुगंध को खुद में समेटे देश की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हुई भाषा है!
कोई भी क्षेत्र हो हिंदी बोलने और हिंदी से जुड़ें लोग आज राष्ट्र के गौरव हैं!
हिन्दी से जुड़ाव और हिंदी से जुड़ी हुई जड़ों की गहराई आज हर क्षेत्र में लोकप्रियता के पैमाना बनी हुई हैं!
देश के लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में चौथी स्तम्भ पत्रकारिता का जगत का सबसे बड़ी ताकत भाषाई रूप में हिन्दी ही है!
आज भी देश में लोकप्रिय वक्ता या नेता वही है, जिसकी हिन्दी मजबूत है और जिसकी हिन्दी मजबूत है वही देश के भावनाओं को समझ रहा है और उस भावना और भाषा को समायोजित करने में कामयाब हो रहा है!
मैं देश के कुछ लोकप्रिय राजनेता जिनकी भाषा और भाषण हिन्दी के प्रयोग के वजह से ज्यादा ओजपूर्ण हुआ है, जिनकी लोकप्रियता को हिन्दी ने बढ़ाया इसे मैं वर्तमान परिपेक्ष में देख पा रहा हूं, की हिन्दी से जुड़े राजनेता और हिंदी से दूर राजनेता दोनों की स्थिति में क्या अन्तर है!
आज देश के सभी बड़े लेखक, कवि, छायाकार, पत्रकार, राजनेता जो देश पर और विश्व पर अपनी छाप छोड़कर गए हैं, उनकी भाषा और लेखनी ने सदैव ही हिंदी का मान बढ़ाया है!
ऐसा कहा जाता है, कि जो धरोहर होता है, उसे संरक्षण की जरूरत पड़ती है!
प्रमाणित तथ्य है कि विश्व में वही देश विकसित है, जिसने अपनी भाषा को सहेजा है, सँवारा है तथा उसे अपनाया हो!
उसी तरह हिंदी भी हमारी भाषा है!
हिन्दी भी हमारी धरोहर है और आज के समय में जहां लोग अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को छोड़कर दूसरे दिशा की ओर जा रहे हैं, और काफी आसानी से दूसरे भाषा की ओर या कहें कि पाश्चात्य भाषा और संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं!
य़ह हमारी भाषाई और सांस्कृतिक धरोहरों के क्षीण होने का कारण बनते जा रहा है!
हम अपने बच्चों को स्थानीय भाषा तो छोड़िए अपनी राजभाषा से भी दूर करते जा रहे हैं!
जिस भाषा में, जिस भाषा ने हमारे देश में अनगिनत महाकाव्य, नाटक, अनगिनत कहानियां, अनगिनत कविताएं, अनगिनत गद्ध पद्ध, प्रेरक प्रसंग,उपन्यास और अनगिनत धारावाहिक, अनगिनत चलचित्र दिए हैं!
जिस भाषा ने देश को गुलामी की ज़ंजीर से बाहर निकालने की लड़ाई में क्रान्तिकारीयों और सेनानियों को आपस में जोड़ने में महत्त्वपूर्ण कड़ी और माध्यम बनकर काम किया है!
जिस भाषा ने देश को सजाया है, जिस भाषा ने देश को एकता के सूत्र में पिरोया है!
आज उसी की सरजमीं पर हिन्दी को मजबूत बनाने की अपील करना या हिन्दी से जुड़ने की अपील करने की जरूरत पड़ रहीं है!
यह दिखाता है कि हम सभी कितने आसानी से अपनी भाषा से विमुख होते जा रहे हैं! अपनी जड़ों को कितनी जल्दी भूल जा रहे हैं!
मैं य़ह नहीं कह रहा हू की आप दूसरे भाषाओं को पढ़ें ही नहीं, प्रयोग ही नहीं करें!
लेकिन कम से कम अपनी भाषा का प्रयोग गर्व से करें,क्योंकि आज देश में सत्तर करोड़ लोगों के हिंदीभाषी होने के बावजूद भी हिंदी पिछड़ती जा रही है धीरे धीरे! हमे यह समझना होगा कि हिन्दी के बिना देश का उत्थान सम्भव नहीं है! लेकिन हिंदीभाषी लोग जान बूझकर अँग्रेजी का चोला ओढ़ लेता है, ताकि लोग उसे विद्वान समझें!
जरूरी नहीं कि यहां पर अँग्रेजी को उसके विरोधी भाषा के दृष्टि से देखने की जरूरत है! लेकिन समाज में कई ऐसे लोग जो हिन्दी आते हुए भी हिंदीभाषी व्यक्ति से जानबूझकर अँग्रेजी में बात करते हैं!
अब इसे क्या कहें!
आज हिंदी के प्रति लोगों में सोच बदलने की जरूरत है! की हिन्दी देश की प्रतिनिधि भाषा के साथ अत्यंत सबल और वैज्ञानिक के साथ साथ वैश्विक भाषा के रूप विकाशशील है!
अगर ऐसा नहीं होता तो शायद महात्मा गांधी, सीमांत गांधी उर्फ खान अब्दुल गफ्फार खान , सी. राजगोपालाचारी जो विभिन्न भाषाई क्षेत्रों से थे हिंदी को देश की भाषा बनाने की वकालत नहीं करते!
बावजूद आज हिंदी को लेकर राष्ट्रीय स्वीकार्यता नहीं बन पाई है!
सही मायनों में हिंदी को भारत में दूसरी भाषाओं या अँग्रेजी से कोई चुनौती नहीं है, सभी भाषाओं की अपनी महता है!
हिन्दी के सबसे बड़े दुश्मन कोई विदेशी नहीं बल्कि अँग्रेजी मानसिकता वाले भारतीय ही हैं!
मेरा मानना है कि अगर अघोषित राष्ट्रभाषा हिंदी, राजभाषा को अगर बचाना है, हिन्दी को हिंद और हिन्दुस्तान के स्वाभिमान और गौरव से जोड़कर रखना है, तो देश में राजभाषा के कम से कम पढ़ाई और प्रयोग अनिवार्य करना होगा!
अँग्रेजी एक भाषा है लेकिन हिन्दी राजभाषा है! अँग्रेजी अगर ज्ञान है तो हिन्दी से संस्कार है!