New Crminal Laws : 1 जुलाई से तीन नए कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम लागू हो जाएंगे। इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को शामिल किया गया है। इसमें पहली बार ई-एफआईआर का प्रावधान किया गया है और हफ्तेभर में फैसला ऑनलाइन उपलब्ध कराना जरूरी है।
नए आपराधिक कानून आज से देशभर में लागू हो गए हैं. भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ब्रिटिशकाल के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. छह अपराधों में सजा के तौर पर कम्युनिटी सेवा का प्रावधान किया गया है.
देशभर में आज रात 12 बजे से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं. 51 साल पुराने सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) लेगी. भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय अधिनियम (BNS) लेगा और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) के प्रावधान लागू होंगे. महिलाओं से जुड़े ज्यादातर अपराधों में पहले से ज्यादा सजा मिलेगी. इलेक्ट्रॉनिक सूचना से भी FIR दर्ज हो सकेगी. कम्युनिटी सेवा जैसे प्रावधान भी लागू होंगे।
पहले जानते हैं कि तीन नए आपराधिक कानून क्या हैं? ……
1 जुलाई से लागू होने वाले तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम हैं। ये कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनयम की जगह लेंगे। 12 दिसंबर, 2023 को इन तीन कानूनों में बदलाव का बिल लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था। 20 दिसंबर, 2023 को लोकसभा और 21 दिसंबर, 2023 को राज्यसभा से ये पारित हुए। 25 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को अपनी मंजूरी दी। वहीं 24 फरवरी, 2024 को केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि तीन नए आपराधिक कानून इस साल 1 जुलाई से लागू होंगे।
नए कानूनों को तकनीकी से कैसा जोड़ा गया है?…..
दस्तावेजों में डिजिटल रिकॉर्ड्स भी शामिल: इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को शामिल किया गया है। दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। सरकार का कहना है कि इससे अदालतों में लगने वाले कागजों के अंबार से मुक्ति मिलेगी।
कानूनी प्रक्रिया में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और वीडियोग्राफी का विस्तार…..
एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। अभी सिर्फ आरोपी की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो सकती है, लेकिन अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्चनिंग सहित, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होगा। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच-पड़ताल और मुकदमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुकदमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी। केंद्र सरकार के अनुसार, नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी और इस विषय के देशभर के विद्वानों और तकनीकी एक्सपर्ट्स के साथ चर्चा कर इसे बनाया गया है। सर्च और जब्ती के वक्त वीडियोग्राफी को आवश्यक कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।
फॉरेंसिक साइंस का अधिकतम इस्तेमाल….
केंद्रीय गृह मंत्री ने सदन में कहा कि था आजादी के 75 सालों के बाद भी हमारा दोष सिद्धि का प्रमाण बहुत कम है, इसीलिए फॉरेंसिक साइंस को हमने बढ़ावा देने का काम किया है। सरकार ने नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय लिया था। तीन साल के बाद हर साल 33 हजार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे। इस कानून में हमने लक्ष्य रखा है कि दोष सिद्धि के प्रमाण (Conviction Ratio) को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है। इसके लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है कि सात वर्ष या इससे अधिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का दौरा आवश्यक किया गया है। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।
मोबाइल एफएसएल की सुविधा: मोबाइल फॉरेंसिक वैन का भी अनुभव किया जा चुका है। दिल्ली में एक सफल प्रयोग किया गया है कि सात वर्ष से अधिक सजा के प्रावधान वाले किसी भी अपराध के स्थल का एफएसएल टीम दौरा करती है। इसके लिए मोबाइल एफएसएल के कॉन्सेप्ट को लॉन्च किया गया है जो कि एक सफल प्रयोग है और हर जिले में तीन मोबाइल एफएसएल रहेंगी और अपराध स्थल पर जाएंगी।
पहली बार ई-एफआईआर का प्रावधान….
नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए पहली बार जीरो एफआईआर की शुरुआत होगी। अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा। अपराध रजिस्टर होने के 15 दिनों के अंदर संबंधित थाने को भेजना होगा। पहली बार ई-एफआईआर का प्रावधान जोड़ा गया है। हर जिले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना देगा।
इस मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग आवश्यक…..
यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान आवश्यक कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब आवश्यक कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना आवश्यक होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी।
हफ्तेभर में फैसला ऑनलाइन उपलब्ध कराना जरूरी…..
2027 से पहले देश की सभी अदालतों को कंप्यूटराइज्ड करने का लक्ष्य रखा गया है। नए कानूनों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी। इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा। कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे। बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर न्यायाधीश को फैसला देना होगा, इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा।