रांची/जमशेदपुर : ग्रामीण कार्य विभाग के अभियंता प्रमुख कार्यालय में टेंडर मैनेजमेंट, कमीशन वसूली और सियासी दखल का खेल पिछले कई महीनों से चरम पर है। इस बीच राजेश रजक को निविदा निष्पादन प्रक्रिया से अलग किए जाने के बाद विभाग में एक ऐसा भूचाल आया है जिसने सिस्टम की भीतर ही भीतर चल रही सड़ांध को सबके सामने ला दिया है। राजेश रजक के हटते ही महीनों से अटकी पड़ी सैकड़ों निविदाओं की तकनीकी जांच प्रक्रिया अचानक शुरू हो गई। जिन टेंडरों को रजक महीनों तक दबाए बैठे थे, उन्हें एक-एक कर खोला जा रहा है। यह घटनाक्रम यह साबित करता है कि अभियंता प्रमुख कार्यालय राजेश रजक के इशारों पर ही चलता रहा है। लेकिन यह भी आश्चर्यजनक है कि रजक के हटते ही पूरा सिस्टम पंगु हो गया है। मौखिक निर्देश पर हटाए जाने के बाद विभाग ने अब तक कोई आधिकारिक पत्र जारी नहीं किया है, जिसकी वजह से पिछले दस दिनों में अभियंता प्रमुख कार्यालय में एक भी टेंडर निष्पादित नहीं हो सका है।
मुख्य अभियंता श्रवण कुमार और राजेश रजक के बीच का गठजोड़ अब खुलकर सामने आ चुका है। निविदा निष्पादन में पारदर्शिता की अनदेखी, चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाना और तकनीकी फाइलों को मनमर्जी से रोके रखने जैसी तमाम वजहों को आधार बनाकर श्रवण कुमार ने मंत्री की सहमति से रजक को निविदा प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया। राजेश रजक जमशेदपुर का स्थायी निवासी है, लेकिन उसने जाली इन से अपना त्यागी पता बनाकर जीवपुर में पोस्टिंग करवाई। सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद उसके खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई। पथ निर्माण से जुड़े एक मामले में राजेश रजक ने अपने संपर्कों से सेटिंग करवाकर मामला दबवा दिया।
राजेश रजक ने अपने सिंडिकेट की मदद से जमशेदपुर कार्य प्रमंडल के अधीन खुली 62 निविदाओं में से 24 बड़ी निविदाओं को अपने चहेते ठेकेदारों को दिलवाया, जिनकी कुल राशि 190 करोड़ रुपये है। वह ठेकेदारों को धमकाता है कि उससे पूछे बिना कोई भी टेंडर नहीं डाल सकता, जिससे सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। राजेश रजक अपने चहेते ठेकेदारों को सेडूल रेट पर ठेका दिलवाकर 10 प्रतिशत दलाली वसूलता है और उसके बाद 2 प्रतिशत पीसी या कट मंत्री लेता है। कुल मिलाकर वह कम से कम 12 प्रतिशत टेंडर राशि की वसूली करता है। वह ऑनलाइन टेंडर अपलोड में भी गड़बड़ी करता है और अपने डिजिटल सिग्नेचर की मदद से टेंडर को छुट्टी वाले दिनों में ही प्रकाशित कराता है, ताकि नए ठेकेदार भाग न ले सकें।
राजेश रजक जनरोपपुर में रोड के प्राक्कलन को फर्जी तरीके से बढ़ाकर स्वीकृत करवाता है, जिससे सरकार को भारी राजस्व का नुकसान होता है। वह ठेकेदारों से अतिरिक्त पैसे लेकर डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड पूरा होने से पहले ही सिक्योरिटी डिपॉजिट लौटा देता है। सिंडिकेट के बाहर के ठेकेदार को समय पर काम पूरा करने के बावजूद मापन पुस्तक और फाइनल मेजरमेंट नहीं करता और उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे वसूलता है। सितंबर 2024 से राजेश रजक ग्रामीण कार्य विभाग के सचिव से एक कार्यालय आदेश के जरिए मुख्य अभियंता के कार्यालय में सचिव प्रार्यधिक (अधीक्षण अभियंता) के रूप में प्रतिनियुक्त है। वह अभियंता प्रमुख का कार्यालय भी देखने लगा है। राजेश रजक एकांत कक्ष में बैठकर दिन भर टेंडर मैनेजमेंट और कमीशन वसूली का काम करता है। उसका एक खास ठेकेदार रंजीत मिश्रा (मेसर्स जॉग साई कन्स्ट्रक्शन) उसका बिजनेस पार्टनर है और नए ठेकेदारों को उसी से संपर्क करने को कहा जाता है।
राजेश रजक के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन ग्रामीण कार्य विभाग के सचिवालय में रंजीत रंजन प्रसाद जैसे अधिकारी पैसे खाकर शिकायतें दबा देते हैं। वह अपने चहेते ठेकेदार को काम मिलने के बाद 1 से 2 करोड़ तक एडवांस पेमेंट करवाता है और फिर अपना कमीशन वसूल लेता है। ऐसे में ठेकेदार को अपना पैसा भी नहीं देना पड़ता और सरकारी पैसे से ही राजेश रजक को कमीशन मिल जाता है। कुछ प्रमुख ठेकेदारों और फर्मों में सोनई मशीन पार्टनर, मर्श चंदेल, असीम महतो (राजेश रजक का ड्राइवर), के.के. विल्डर्स, भाकत कन्सट्रक्शन, चंदेल कन्सट्रक्शन, धालभुन कन्सट्रक्शन, जे.डी. कन्सट्रक्शन, निरंजन कुमार, ओम साई कन्सट्रक्शन, रे कन्सट्रक्शन, सतभामा कन्सट्रक्शन आदि शामिल हैं।
यह मामला सिर्फ एक अधिकारी की गलतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की कमजोरी और भ्रष्टाचार को उजागर करता है। विभाग को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कड़े कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
