जमशेदपुर: रतन टाटा (Ratan Tata) देश के महान उद्योगपतियों में से एक है। रतन टाटा इतने बड़े बिजनेसमैन होते हुए भी काफी सिंपल लाइफस्टाइल जीते हैं। रतन टाटा (Ratan Tata) आज देश के छोटे बड़े उद्योगपतियों और युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
28 दिसंबर को रतन टाटा का जन्मदिन है। रतन टाटा ने अपनी पूरी जिंदगी टाटा ग्रुप के नाम की है। उन्हीं में से एक कंपनी के बारे में आज हम आपको बताएंगे। यह कंपनी रतन टाटा के दिल के बेहद करीब है क्योंकि यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई थी। यह कंपनी कोई और नहीं बल्कि टाटा स्टील है।
रतन टाटा के दिल के करीब है टाटा स्टील
रतन टाटा (Ratan Tata) की बात हो रही हो और टाटा स्टील का जिक्र ना हो ऐसा होना असंभव है। टाटा स्टील (Tata Steel) उनके दिल के इतने करीब इसलिए है क्योंकि यहीं से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की।
रतन टाटा ने टाटा स्टील में ट्रेनी के तौर पर ज्वाइन किया था और यहां से वे टाटा ग्रुप के अध्यक्ष बने। आज टाटा स्टील देश की प्रमुख कंपनियों में से एक है। इस कंपनी की शुरुआत साल 1907 में हुई थी। गुलामी की जंजीर से आजादी की नई सुबह तक इस कंपनी ने बड़े उतार-चढ़ाव देखें। मगर आज यह कंपनी देश के सफल स्टील कंपनियों में से एक है।
सैलरी देने तक के नहीं थे पैसे
हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब टाटा स्टील कंपनी को अपने कर्मचारियों को सैलरी देने तक के पैसे नहीं थे। साल 1942 का वह दौर था जब टाटा स्टील बुरे दौर से गुजर रही थी। तभी कंपनी की सारी जिम्मेदारी दोराबजी टाटा के कंधों पर थी। दोराबजी टाटा अपनी कंपनी के इस वित्तीय संकट की वजह से काफी चिंतित थे। उन्हें कंपनी को इस बड़ी संकट से बचने का उपाय सूझ ही नहीं रहा था।
गिरवी रखना पड़ा गहना
फिर सर दोराबजी टाटा की पत्नी लेडी मेहरबाई ने अपने गहने गिरवी रखकर कंपनी को इस वित्तीय संकट से बचने का सुझाव दिया। उनके पास 245 कैरट का एक हार था। जो जुबली हीरे का बना हुआ था। उस समय उस हीरे की कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी। इस हार को गिरवी रखकर उन्होंने कंपनी को वित्तीय संकट से उबारने का फैसला किया। आज के दौर में टाटा स्टील देश के टॉप स्टील कंपनियों में से एक है।